इस कलेक्शन को देखने के बाद, आपको आ जाएगी भगवान शिव की याद
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इन कलेक्शन में सामान्यतौर पर डेली लाइफ से जुड़ी चीजें या फूल-पत्ते और जानवर कढ़ाई के जरिए कपड़े पर खूबसूरत तरीके से दिखाई जाती है। परंपरागत रूप से ये खूबसूरत कढ़ाई ज्यादातर धोती या साड़ी पर की जाती रही है जिसमें ज्यादातर ये सिम्प्ल रनिंग स्टिच में बॉर्डर पर इस्तेमाल की जाती है हालांकि प्रोडक्ट के अनुसार इसे लेप कांथा या सुजनी कांथा भी कहा जाता है।

ज्यादातार देखा जाए तो इन कपड़ो को औरतें शोल के रूप में या घर के पर्दों के रूप में इस्तेमाल करती हैं क्योंकि इन प्रकार के कपड़ों में कढाई हुई होती है। कढ़ाई किए हुए इन कपड़ों को ज्यादातर औरतें शॉल के रूप में या आईने, बक्से और तकिए के कवर के रूप में भी इस्तेमाल करती हैं. कुछ खास लुक के लिए पूरे कपड़े पर रनिंग स्टिच के साथ ये कढ़ाई की जाती है. इस तरह इसमें फूलों, जानवरों, पक्षियों और जियमैट्रिकल शेप्स में खूबसूरत मोटिफ्स इस्तेमाल किए जाते हैं | स्टिच के जरिए इन मोटिफ्स का इस्तेमाल करते हुए कपड़ों पर इसमें एक थीम भी दी जाती है।

कांथा एम्ब्रॉयडरी को हाल ही में डिज़ाइनर्स ने नए रूप में अपने कलेक्शन में इस्तेमाल करना शुरु किया है. इस तरह अब ये सिर्फ ट्रेडिशनल कपड़ों पर ट्रेडिशनल रूप में इस्तेमाल न होकर मॉडर्न वेयर में भी यूज किया जाने लगा है. इसके अलावा डिज़ाइनर इसे सिर्फ कॉटन पर इस्तेमाल न करते हुए कई तरह के फैब्रिक्स पर और कई तरह के डिज़ाइन में यूज कर रहे हैं |

कांथा का मतलब होता है गला जो भगवान शिव से जुड़ा माना जाता है. एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को पीकर दुनिया को बचाया था, इसलिए ये शब्द वेदिक काल से जुड़ा है. ये मुख्य रूप से साधारण रनिंग स्टिच होता है. ये इंडिया की कुछ सबसे पुरानी कढ़ाई तकनीकों में एक माना जाता है, फर्स्ट या सेकंड एडी काल से ही इसकी शुरुआत मानी जाती है. इस स्टिच से एक और विश्वास जुड़ा है और इसके अनुसार भगवान बुद्ध और उनके शिष्य रात में अपनी बॉडी को ढकने के लिए पुराने कपड़े इस्तेमाल करते थे और वहीं से कांथा कढ़ाई की शुरुआत हुई.

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