आखिर क्यों राम मंदिर के झंडे पर छापा गया कोविदार का पेड़? जानिए इसका धार्मिक महत्व
आखिर क्यों राम मंदिर के झंडे पर छापा गया कोविदार का पेड़? जानिए इसका धार्मिक महत्व
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22 जनवरी 2024 को अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होनी है। इसको लेकर देशभर में भारी उत्साह है। इसी बीच यह जानकारी आई है कि राम मंदिर पर लगाए जाने वाले झंडे के डिजाइन में परिवर्तन किया गया है. राम मंदिर के झंडे पर सूर्य और कोविदार के पेड़ के चिन्ह को अंकित किया गया है. श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए 100 झंडे मध्यप्रदेश के रीवा से भेजे जा रहे हैं. इन्हें रीवा के हरदुआ गांव निवासी ललित मिश्रा ने तैयार किया है.

वही हाल ही में ललित मिश्रा ने राम मंदिर के ध्वज का प्रारूप भी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को भेंट किया था. 5 सदस्य कमेटी ने कुछ परिवर्तन करने का सुझाव भी दिया था. अब नया डिजाइन कमेटी के सामने पेश किया जाएगा. तत्पश्चात, झंडे की लंबाई और चौड़ाई निर्धारित की जाएगी. राम मंदिर के शिखर पर सजने वाला यह झंडा बहुत विशेष माना जा रहा है. ललित मिश्रा ने बताया कि सूर्यवंश का प्रतीक सूर्य है इसलिए इस झंडे पर सूर्य के चिन्ह को अंकित किया गया है. कोविदार पेड़ अयोध्या का राज वृक्ष है. जैसे वर्तमान में भारत में बरगद राष्ट्रीय पेड़ बोला जाता है, वैसे ही कोविदार का पेड़ उस वक़्त राज वृक्ष माना जाता था. कोविदार के वृक्ष को कुछ स्थानों पर कचनार का वृक्ष भी कहते हैं किन्तु यह धारणा गलत है क्योंकि ये दोनों वृक्ष अलग-अलग हैं.

पुराणों में मिलता है जिक्र
कोविदार पेड़ की संख्या वक़्त के साथ-साथ बहुत कम हो गई. धार्मिक दृष्टि से यह वृक्ष बहुत अहम हुआ करता था जिसका पुराणों में भी जिक्र देखने को मिलता है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, ऋषि कश्यप ने इस पेड़ की रचना की थी. इस वृक्ष का जिक्र हरिवंश पुराण में भी मिलता है जिसके अनुसार, कोविदार वृक्ष अयोध्या के राजध्वज में अंकित होता था. इसलिए ही इसे भव्य राम मंदिर के झंडे में चिन्हित किया गया है. वाल्मीकि रामायण में इस झंडे का जिक्र महर्षि वाल्मीकि ने किया था. इसके साथ ही यह पर्यायवरण के लिए बेहद फलदायी माना जाता है. साथ ही इस वृक्ष में बहुत से औषधिय गुण भी पाए जाते हैं. रामायण के एक कथन के मुताबिक, जब भरत श्रीराम से अयोध्या वापस लौटने की प्रार्थना करने के लिए चित्रकूट गए थे, तब उनके रथ पर लगे ध्वज पर कोविदार वृक्ष चिन्हित था. लक्ष्मण जी ने दूर से ही उस झंडे को देखकर अनुमान लगा लिया था कि यह अयोध्या की ही सेना है.

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