भागवत के अनुसार इनमे से किसी का भी बुरा चाहने पर होगा आपका भी बुरा
भागवत के अनुसार इनमे से किसी का भी बुरा चाहने पर होगा आपका भी बुरा
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श्रीमद्भागवत महापुराण का हिंदू धर्म ग्रंथों में विशेष महत्त्व है क्योकि इसमें स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने उपदेश दिए थे इन्ही के अनुसार मनुष्य को इन पांच के बारे में बुरा नहीं सोचना चाहिए |

देवता- कभी भी देवताओ के बारे में गलत नहीं सोचना चाहिए या फिर किसी को भी देवताओं के लिए मन में द्वेष की भावना नहीं आने देना चाहिए। चाहे किसी भी परिस्थिति का सामना क्यों न करना पड़ रहा हो, लेकिन हमेशा भगवान पर विश्वास रखना चाहिए। क्योकि रावण ने देवताओ को अपना दुश्मन मान रखा था जिसके कारण सभी देवताओ के निवेदन से भगवान् विष्णु ने राम का अवतार लिया था और रावन का वध किय 

वेद- कई बार दैत्यों ने भगवान् ब्रम्हा के वेदों को छिनने और उनका आपमान करने कि कोशिश कि लेकिन वे म्रत्यु को प्राप्त हुए इसलिए हर मनुष्य को अपने धर्म ग्रंथों और धर्मिक पुस्तकों का सम्मान करना चाहिए। रोज अपने दिन की शुरुआत कोई न कोई धार्मिक पुस्तक या ग्रंथ पढ़ कर ही करनी चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य के अपने हर काम में सफलता जरूर मिलती है।

गाय हिन्दू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया साथ ही भागवत में कहा गया है कि जो भी गाय का अपमान करेगा यहाँ उसके वह राक्षस कि ही गिनती में आएगा

 ऋषि - एक बार ऋषि मैत्रेय धृतराष्ट्र से मिलने के लिए उनके महल में आए थे। धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों ने ऋषि का बहुत स्वागत-सत्कार किया। महर्षि मैत्रेय दुर्योधन को अधर्म और जलन की भावना छोड़ कर धर्म का साथ देने को कहा। वे उसे पांडवों से दुश्मनी छोड़ कर मित्रता करने को कहने लगे। ऋषि की बात का अपमान करते हुए दुर्योधन उन पर हंसने लगा। इस अपमान से क्रोधित होकर ऋषि ने दुर्योधन को युद्ध में मारे जाने का श्राप दे दिया था।  हर किसी को ऋषियों और साधुओं का हमेशा सम्मान करना चाहिए। उनकी दी गई सलाह का पालन अपने जीवन में करना चाहिए। ऋषियों और साधुओं के मार्गदर्शन से मनुष्य की हर कठिनाई आसान हो जाती है और वह किसी भी मुसीबत का सामना बहुत ही आसानी से कर लेता है।

धर्म - अश्वत्थामा गुरु द्रोण का पुत्र था, लेकिन उसका मन हमेशा ही अधर्म के कामों में लगा रहता था। वह हमेशा से ही पांडवों को अपना शत्रु और दुर्योधन को अपना मित्र मानता था। इसी वजह से उसने दुर्योधन के साथ मिलकर जीवनभर अधर्म के साथ दिया और अधर्म ही करता रहा। धर्म की निंदा करने और अधर्म का साथ देने की वजह से ही भगवान कृष्ण ने उसे दर-दर भटकने और उसकी मुक्ति न होने का श्राप दिया था। जो मनुष्य धर्म कामों को छोटा मान कर, गलत कामों में अपना मन लगाता है, वह हमेशा ही अपना नुकसान करता है|

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