मुफ्तखोरी के खिलाफ PIL पर सुप्रीम कोर्ट पहुंची AAP, फ्री घोषणाओं को लेकर कही ये बात
मुफ्तखोरी के खिलाफ PIL पर सुप्रीम कोर्ट पहुंची AAP, फ्री घोषणाओं को लेकर कही ये बात
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नई दिल्ली: मुफ्तखोरी के विरोध में वकील अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका (PIL) दाखिल कर रखी है। अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय में PIL दाखिल करते हुए ये मांग की है कि मुफ्तखोरी का ऐलान  करने वाली पार्टियों की मान्यता निरस्त कर दी जाए। अश्विनी उपाध्याय की इस याचिका के खिलाफ दिल्ली और पंजाब की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी अब सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

AAP ने अश्विनी उपाध्याय की PIL के खिलाफ शीर्ष अदालत में हस्तक्षेप याचिका दाखिल की है। इस याचिका के माध्यम से AAP ने इस मामले में खुद को भी पार्टी बनाए जाने की मांग की है। AAP ने जनता को मुफ्त सामान या सुविधा देने संबंधी घोषणाएं करने को सियासी दलों का लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार करार दिया है। AAP ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय को भाजपा का सदस्य करार देते हुए उनकी मंशा पर भी सवाल खड़े किए हैं। AAP ने हस्तक्षेप याचिका के जरिए शीर्ष अदालत से ये अपील की है कि मामले में उसका पक्ष भी सुना जाए और अश्विनी उपाध्याय की याचिका खारिज की जाए। AAP ने सर्वोच्च न्यायालय से ये भी कहा है कि जनता को फ्री पानी, बिजली, ट्रांसपोर्ट, स्वास्थ्य सेवा जैसी सुविधाएं देना लोककल्याण वाली सरकार की जिम्मेदारी है।

AAP ने अश्विनी उपाध्याय की इस याचिका को सर्वोच्च न्यायालय के उस पुराने फैसले के विपरीत बताया, जिसमें अदालत ने कहा था कि PIL  दायर करने वाले के हाथ, दिल और मंशा साफ होनी चाहिए। AAP ने कहा है कि यहां तो ये जनहित याचिका सियासी दृष्टिकोण से दायर की गई है। याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए AAP ने मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों का भी जिक्र किया हैं, जिनमें अदालत ने जनहित याचिका दाखिल करने वाले अश्विनी उपाध्याय को जमकर लताड़ लगाई थी।

AAP की तरफ से दाखिल की गई हस्तक्षेप याचिका में ये भी कहा गया है कि अश्विनी उपाध्याय की PIL विशिष्ट आर्थिक और वित्तीय विकास मॉडल के साथ-साथ जनता के सामूहिक कल्याण की योजनाओं पर भी न्यायिक कार्रवाई कराना चाहती है। यदि करदाताओं के टैक्स से भरे सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचना ही मुद्दा है, तो खुद केंद्र और कई राज्य सरकारें भी तो बड़े उद्योग घरानों को सब्सिडी देती हैं। वो भी तो फ्री में ही बांट रही हैं। ये मानना गलत है कि निर्वाचित जन प्रतिनिधि सरकारी खजाने और जनहित को लेकर उदासीन होते हैं। सभी चुनावी हथकंडे नहीं होते।

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