आखिर क्यों है नारद, विष्णु भगवान के सबसे प्रिय भक्त
आखिर क्यों है नारद, विष्णु भगवान के सबसे प्रिय भक्त
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एक दिन वन में सुखी लकड़ी बीनते समय नन्द की माता को एक साँप ने डस लिया. साँप के डसे जाने पर वह काल का ग्रास बन गई अब नन्द बिलकुल अकेला हो चुका था. नन्द एक उच्चे पर्वत पर गया तथा उसने भगवान विष्णु के चरणो में ध्यान लगाना शुरू किया उन्हें ऐसा करते हुए अनेक वर्ष बीत गए. अंततः भगवान विष्णु साक्षात नन्द के सामने प्रकट हुए तथा उनसे वरदान मागने के लिए कहा. नन्द भगवान विष्णु से बोले में आपके दुर्लभ दर्शन पाकर कृतार्थ हो गया व मेरे मन में कोई संसारिक इच्छा शेष नही रह गयी है. में इसी तरह आपका ध्यान करते हुए आपके रूप को प्राप्त करना चाहता हु.

भगवान विष्णु बोले” मैं तुम्हारी निस्वार्थ सेवा भक्ति से बहुत प्रसन्न हुआ हु, तुम जैसा कोई भक्त आज तक न हुआ है न होगा. अतः में तुम्हे वरदान देता हूँ की तुम अगले जन्म में तीनो लोको में मेरे परम भक्त के रूप में प्रसिद्ध होगे. मेरे प्रति तुम्हारी निस्वार्थ भक्ति तुम्हे सदा के लिए अमर कर देगी, यह कहते हुई भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए. तत्पश्चात नन्द ने ब्रह्चर्य व्रत का संकल्प लिया तथा भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करते हुए पृथ्वी में भर्मण करने लगे.

समय व्यतीत होता रहा और कुछ वर्षो बाद नन्द ने श्री हरी के चरणो में अपने प्राण त्याग दिए. अगले जन्म में देवऋषि नारद ब्रह्मा जी के मानश-पुत्र के रूप में जन्मे तथा तीनो लोको में देवऋषि नारद के रूप में प्रसिद्ध हुए. अपने इस जन्म में भी देवऋषि नारद ने ब्रह्मचर्य का संकल्प धारण करते हुए भगवान विष्णु की महिमा में अपना ध्यान लगाया.

क्यों है नारद विष्णु भगवान के सबसे प्रिय..

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