कुल्लू श्रीखंड की यात्रा किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं
कुल्लू श्रीखंड की यात्रा किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं
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दुनिया की सबसे दुर्गम धार्मिक यात्राओं में शुमार कुल्लू श्रीखंड यात्रा विश्व पटल पर उभर रही है। कई साल से देश के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु यात्रा में पहुंच रहे हैं। श्रीखंड यात्रा के लिए 25 किलोमीटर की सीधी चढाई श्रद्धालुओं के लिए अग्नि परीक्षा जैसी होती है। कई बार तो इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की मौत भी हो चुकी है। 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित श्रीखंड यात्रा के दौरान सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की भी कमी पडती है। श्रीखंड जाते समय करीब एक दर्जन धार्मिक स्थल व देव शिलाएं हैं। श्रीखंड में भगवान शिव की शिवलिंग हैं। श्रीखंड से करीब 50 मीटर पहले पार्वती, गणेश व कार्तिक स्वामी की प्रस्तर प्रतिमाएं हैं। 

कैसे पहुंचे श्रीखंड: श्रीखंड जाने के लिए शिमला से रामपुर 130 किलोमीटर व रामपुर से बागीपुल 35 किलोमीटर दूर है। निरमंड के बागीपुल से जावं तक सात किलोमीटर वाहन योग्य सड़क है। उसके बाद फिर 25 किलोमीटर की सीधी चढाई शुरू होती है। सिंहगाड, थाचरू, कालीकुंड, भीमडवारी, पार्वती बाग,नयनसरोवर व भीमबही आदि स्थान आते हैं। सिंहगाड यात्रा का बेस कैंप है। जहां से नाम दर्ज करने के बाद श्रद्धालुओं को यात्रा की अनुमति दी जाती है। श्रीखंड सेवा समिति की ओर से श्रद्धालुओं के लिए हर पडाव पर लंगर की व्यवस्था होती है। श्रीखंड जाते समय प्राकृतिक शिव गुफा, निरमंड में सात मंदिर, जावों में माता पार्वती सहित नौ देवियां, परशुराम मंदिर, दक्षिणेश्वर महादेव, हनुमान मंदिर अरसु, सिंहगाड, जोतकाली, ढंकद्वार, बकासुर बध, ढंकद्वार व कुंषा आदि स्थान आते हैं। 

पौराणिक मान्यता: श्रीखंड की पौराणिक मान्यता है कि भस्मासुर राक्षस ने अपनी तपस्या से शिव से वरदान मांगा था कि वह जिस पर भी अपना हाथ रखेगा तो वह भस्म होगा। राक्षसी भाव होने के कारण उसने माता पार्वती से शादी करने की ठान ली। इसलिए भस्मापुर ने शिव के ऊपर हाथ रखकर उसे भस्म करने की योजना बनाई लेकिन भगवान विष्णु ने उसकी मंशा को नष्ट किया। विष्णु ने माता पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर को अपने साथ नृत्य करने के लिए राजी किया। नृत्य के दौरान भस्मासुर ने अपने सिर पर ही हाथ रख लिया और भस्म हो गया। आज भी वहां की मिट्टी व पानी दूर से लाल दिखाई देते हैं।

 

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