सिद्धवट मंदिर.... दूध अर्पण से पितरों का होता है मोक्ष
सिद्धवट मंदिर.... दूध अर्पण से पितरों का होता है मोक्ष
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पितरों के मोक्ष के निमित्त तीर्थ स्थलों पर पूजन अर्चन और तर्पण आदि के साथ ही पिंडदान करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। गयाजी, हरिद्वार, नासिक आदि स्थानों के साथ ही उज्जैन में भी सिद्धवट नामक ऐसा स्थान है जहां पितरों के मोक्ष के निमित्त कर्म किये जाते है।

सिद्धवट मंदिर अति प्राचीन है तथा शिप्रा के तट पर स्थित है। प्रयाग के अक्षयवट की तरह ही यहां भी सिद्धवट है। मान्यता है कि सिद्धवट प्रलयकाल से ही फल फूल रहा है। धर्मशास्त्र में यह उल्लेख मिलता है कि तारकासुर के वध के उपरांत भगवान कार्तिकेय ने अपनी शक्ति को यहीं शिप्रा में फेंक दिया था, जो पाताल में चली गई थी।

इसलिये इस स्थान को शक्तिभेद तीर्थ भी कहा गया है। सिद्धवट के पश्चिम में घाट पर प्रेत शीला है। सिद्धवट पर चैदस तिथि के साथ ही श्राद्ध पक्ष आदि में पितरों के मोक्ष निमित्त कर्म किये जाते है तो वहीं चैदस तिथि पर दूध अर्पण करने से भी पितरों को तृप्त किया जाता है, लिहाजा मंदिर में भीड़ उमड़ती है।

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