विधाता ने सबके नसीब में जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त करने को लिखा है, जो बुरे कर्म करता है तथा जो दुसरो के साथ जैसा करता है उसे भी वैसा ही भोगना पड़ता है मनुष्य अच्छा हो या बुरा वह अपने कर्मो से नहीं भाग सकता, आइये आज हम आपको कर्मो से जुड़ी एक ऐसे ही एक कथा सुनाते है-
गर्मी का दिन चल रहा था एक बार नारद जी और उनका शिष्य तुम्बरू कहीं जा रहे थे चलते चलते रास्ते में नारद जी को बहुत थकान महशुस हुई और प्यास के कारण उनका गला भी सूखा जा रहा था तब उन्हें मार्ग में पीपल के पेड़ के नीचे एक प्याऊ दिखा वंहा पर नारद जी उस प्याऊ के पास गए उन्होंने वंहा पर पानी पिया और विश्राम करने लगे थोड़ी देर बाद वंहा से एक मनुष्य 30 से 35 बकरों को ले जा रहा था तभी उनमे से एक बकरा पास की दूकान पर जाकर घास खाने लगा (वह दूकान सेठ शंगाल्चंद की थी जो की मर चूका है) यह देख दुकानदार ने बकरे का कान पकड़कर कर उसे बहुत मारा और उस बकरे को पास की ही एक कसाई की दूकान पर दे दिया और कसाई वाले से कहा की जब भी तू इस बकरे को काटेगा तो इसका सर मुझे देना क्योकि इस बकरे ने मेरी सारी घास खा गया है (आपको बता दें की वह दूकानदार सेठ शंगाल्चंद का पुत्र है)
यह देख नारद जी को बहुत आश्चर्य हुआ उन्होंने ध्यान मग्न होकर उस बकरे का भूतकाल देखा तो उन्हें पता चला की वह बकरा सेठ शंगाल्चंद है जो मरकर बकरा बना है और वह दुकानदार उसका पुत्र है इसलिए 30 से 35 बकरों में वही बकरा घास खाने गया क्योकि बकरे का उस दूकान से पुराना सम्बन्ध है वह बकरा अपनी दूकान समझकर वहां घास खाने गया, तो उसी के लड़के ने उसे खूब मारा और कसाई के पास देकर आ गया. तब नारद जी ने कहा की यही है विधि का विधान जो जैसा करता है उसे वैसा ही भोगना पड़ता है. कोई भी अपने कर्मो से नहीं भाग सकता.
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