भक्तिकाल में अमर है कृष्णभक्ति की ये कवयित्री
भक्तिकाल में अमर है कृष्णभक्ति की ये कवयित्री
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भारत में आदि काल में कई महान कवि और कवयित्री हुए हैं जिनकी गाथा आज तक लोगों को पढ़ने और सुनने मिल रही है। ऐसी ही ए​क कवयित्री हैं मीराबाई जो कृष्णभक्ति शाखा की हिंदी की महान कवयित्री मानी जाती हैं। इनका जन्म संवत् 1573 में जोधपुर में चोकड़ी नामक गाँव में हुआ और इनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज जी के साथ हुआ था। मीराबाई ने बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि ली है और उन्होने जीवनभर कृष्णभक्ति की है। 

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मीराबाई के पति का स्वर्गवास विवाह के कुछ दिनों बाद ही हो गया था और फिर पति के स्वर्गवास हो जाने के बाद मीराबाई की भक्ति दिन-प्रति-दिन और बढ़ती गई। वे मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की लेकिन भगवान कृष्ण की कृपा उन पर हमेशा बनी रही। मीराबाई घरवालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर द्वारका और वृंदावन चली गई।

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मीराबाई ने अपने बहुत से पदों की रचना राजस्थानी मिश्रित भाषा में ही है। इसके अलावा कुछ विशुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा में भी लिखा है। इन्होने जन्मजात कवियित्री न होने के बावजूद भक्ति की भावना में कवियित्री के रुप में प्रसिद्धि प्रदान की। मीरा के विरह गीतों में समकालीन कवियों की अपेक्षा अधिक स्वाभाविकता पाई जाती है। इन्होंने अपने पदों में श्रृंगार और शांत रस का प्रयोग विशेष रुप से किया है।

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