सुनिए महर्षि वशिष्ठ के द्वारा मोहिनी एकादशी की कथा
सुनिए महर्षि वशिष्ठ के द्वारा मोहिनी एकादशी की कथा
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श्री राम भगवान ने महर्षि वशिष्ठ से  सीताजी के वियोग में बहुत दुःखी होते हुए एक ऐसे व्रत के बारे में बताने के लिए कहा जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए तब महर्षि वशिष्ठ ने कहा - हे राम! मोहिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से सब पाप नष्ट हो जाते है और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को जाता है. इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं. संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है. इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता है.

महर्षि वशिष्ठ श्रीराम जी से बोले - हे राम! सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था. वहाँ धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता था. वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था. उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे और सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे. भाग्ये से उसके 5 पुत्र थे- सुमना, सद्‍बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि.

इनमें से पाँचवाँ पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था. वह पितर आदि को नहीं मानता था, वेश्यावृति, कदाचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलना,पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करना  तथा मद्य-मांस का सेवन करने जैसे कई अधर्मो में वह पिरता का धन नष्ट करता था.

उसके दुराचार से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया. घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा. जब सबकुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और कदाचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया और वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगा. कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया.एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया. मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया. राजा की अनुमति से उसे कारागार में डाल दिया गया. कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए. बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा.

वह नगरी से निकल वन में चला गया.वहाँ वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा और अपना समय इसी तरह व्यय करने लगा. इसी तरह कुछ समय पश्चात वह बहेलिया बन गया और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा. एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया. उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे. उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्‍बुद्धि प्राप्त हुई.

वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुनिवर! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं, आप मुझे इन पापों से छूटने का कोई साधारण और महत्वपूर्ण उपाय बताइए. उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो. इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया.

 

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