पंचक्रोशी यात्रा का महत्व
पंचक्रोशी यात्रा का महत्व
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उज्जैन। पुरातन काल से ही अपने पापों के प्रायश्चित के लिए इंसान द्वारा तरह-तरह के अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता रहा है और इसका मकसद ईश्वर के प्रति निकटता पाना होता है। यह सिलसिला आज भी जारी है। ऐसी मान्यता है कि पापों को समाप्त करने की शक्ति बाबा महाकाल में है। स्कंद पुराण में कहा गया है कि पूरे जीवन के काशीवास से ज्यादा महत्वपूर्ण तथा पुण्यकारी काम वैशाख के मास में पांच दिन का अवंतिवास है।

पापों से मुक्ति पाने और पुण्य कमाने के लिए ही देश भर के श्रद्धालु पंचक्रोशी यात्रा में हिस्सा लेने के लिए उज्जैन पहुँचते हैं। मान्यता है कि इस लम्बी यात्रा में शामिल होने से निहित स्वार्थ, दुराग्रह, पूर्वाग्रह, कटुता, वैमनस्यता तथा मोहमाया के सारे बंधन मानों पीछे छूटे जाते हैं।

पंचक्रोशी यात्रा 118 किलोमीटर तक निकाली जाती है और इसमें कुल सात पड़ाव व उप पड़ाव आते हैं। इन पड़ावों व उप पड़ावों के बीच कम से कम छह से लेकर 23 किलोमीटर तक की दूरी होती है। नागचंद्रेश्वर से पिंगलेश्वर पड़ाव के बीच 12 किलोमीटर, पिंगलेश्वर से कायावरोहणेश्वर पड़ाव के बीच 23 किलोमीटर, कायावरोहणेश्वर से नलवा उप पड़ाव तक 21 किलोमीटर, नलवा उप पड़ाव से बिल्वकेश्वर पड़ाव अम्बोदिया तक छह किलोमीटर, अम्बोदिया पड़ाव से कालियादेह उप पड़ाव तक 21 किलोमीटर, कालियादेह से दुर्देश्वर पड़ाव जैथल तक सात किलोमीटर, दुर्देश्वर से पिंगलेश्वर होते हुए उंडासा तक 16 किलोमीटर और उंडासा उप पड़ाव से क्षिप्रा घाट रेत मैदान उज्जैन तक 12 किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है। 

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