यहाँ बारिश के 7 दिन पहले ही मिल जाती बारिश होने की खबर
यहाँ बारिश के 7 दिन पहले ही मिल जाती बारिश होने की खबर
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भारत देश एक ऐसा देश है जो अपने आप में आश्चर्यो से भरा हुआ है. इस देश के हर राज्य के हर शहर के कोने-कोने में कोई न कोई अदुभुत जगह मौजूद हैं. ऐसी ही एक अद्भुत  जगह है उत्तर प्रदेश के कानपुर जनपद में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर. ये मंदिर अपनी एक विशेषता के कारण हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा हैं. इस मंदिर की विशेषता यह है की यह मंदिर बारिश होने की सुचना 7 दिन पहले ही दे देता है. आपको भी यकीन नही हुआ न मगर यह हकीकत है.

यह भगवान जगन्नाथ का मंदिर है. यह मंदिर कानपुर जनपद के भीतरगांव विकासखंड मुख्यालय से तीन किलोमीटर पर बेंहटा गांव में स्थित है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर की खासियत यह है कि बरसात से 7 दिन पहले इसकी छत से बारिश की कुछ बूंदे अपने आप ही टपकने लगती हैं.

हालांकि इस रहस्य को जानने के लिए कई बार प्रयास हो चुके हैं पर तमाम सर्वेक्षणों के बाद भी मंदिर के निर्माण तथा रहस्य का सही समय पुरातत्व वैज्ञानिक पता नहीं लगा सके. बस इतना ही पता लग पाया कि मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 11वीं सदी में हुआ था. उसके पहले कब और कितने जीर्णोद्धार हुए या इसका निर्माण किसने कराया जैसी जानकारियां आज भी अबूझ पहेली बनी हुई हैं, लेकिन बारिश की जानकारी पहले से लग जाने से किसानों को जरूर सहायता मिलती है.

इस मन्दिर में भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और बहन सुभद्रा की काले चिकने पत्थर की मूर्तियां स्थापित हैं. साथ ही सूर्य और पदमनाभम भगवान की भी मूर्तियां हैं. मंदिर की दीवारें 14 फीट मोटी हैं. वर्तमान में मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है. मंदिर से वैसी ही रथ यात्रा निकलती है जैसी पुरी उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर से निकलती है.

मौसमी बारिश के समय मानसून आने के एक सप्ताह पूर्व ही मंदिर के गर्भ ग्रह के छत में लगे मानसूनी पत्थर से उसी घनत्वाकार की बूंदें टपकने लगती हैं, जिस तरह की बरसात होने वाली होती है. जैसे ही बारिश शुरू होती है वैसे ही पत्थर सूख जाता है.

मंदिर के पुजारी दिनेश शुक्ल ने बताया कि कई बार पुरातत्व विभाग और आईआईटी के वैज्ञानिक आए और जांच की. न तो मंदिर के वास्तविक निर्माण का समय जान पाए और न ही बारिश से पहले पानी टपकने की पहेली सुलझा पाए हैं. हालांकि मंदिर का आकार बौद्ध मठ जैसा है. जिसके कारण कुछ लोगों की मान्यता है कि इसको सम्राट अशोक ने बनवाया होगा, परन्तु मंदिर के बाहर बने मोर और चक्र की आकृति से कुछ लोग इसको सम्राट हर्षबर्धन से जोड़ कर देखते हैं.

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