पता था हमला होगा, फिर भी वह पहुंच गए नक्सलियों के गढ़ में
पता था हमला होगा, फिर भी वह पहुंच गए नक्सलियों के गढ़ में
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बस्तर : बस्तर के डब्बामरका में नक्सलियों से तीनों ओर से घिरे जवानों के लिए उनकी मांद से निकलना आसान नहीं थी, लेकिन अब तक 200 जवानों को सुरक्षित निकाल लिया गया है। तीन जवान शहीद हो गए है और 12 की हालत गंभीर बनी हुई है, जब कि 17 घायल है। गुरुवार की सुबह से ही यहां एनकाउंटर चल रहा था।

26 घंटों से लड़ रहे जवानों को पता था कि हमला होगा फिर भी अपनी जान की परवाह किए बिना जा पहुंचे नक्सलियों के गढ़ में गोलियों की बौछार हो रही थी, फिर भी जवाबी हमला करते हुए 7 किमी तक आगे बढ़े। जब तक डब्बामरका पहुंचे, तब तक अंधेरा हो गया।

सीआरपीएफ के कमांडर पीएस यादव ने फोर्स को घेरा बनाकर और पोजीशन लेकर वहीं रुकने के लिए कहा। वो सैटेलाइट फोन से पुलिस और अधिकारियों से लगातार संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सिग्नल वीक था, कई बार की कोशिशों के बाद उन्होने सभी को मैसेज दिया कि रात यहीं रुकना है। सभी घोर अंधेरे में चुपचाप लेटे रहे।

सुबह बैक्प फोर्श आई तब सबने पोजिशन बदली। 1 मार्च को जवान ऐसे इलाके में गए, जो पूरी तरह नक्सलियों के कब्जे में है। गोलापल्ली की ओर बढ़े, जो नक्सलियों का हेडक्वार्टर है। हम 5 दिन का राशन लेकर गए थे, दो दिनों तक जंगल में सर्च अभियान चलाया। किस्टाराम से निकले तो एंबुश में फंस गए।

जहां हम अपने तीन जवान खो दिए। हमारा ऑपरेशन सफल रहा, हम वहां तक पहुंच गए जहां नक्सलियों का गढ़ माना जाता है। ऑपरेशन में 10 नक्सली भी मारे गए। एक मार्च को सीआरपीएफ 208 और डीआरजी के जवानों की ज्वाइंट टीम किस्टारम से ऑपरेशन पर निकली थी।

नक्सलियों के बीच फंसे करीब डेढ़ सौ से ज्यादा जवानों को निकालने के लिए शुक्रवार सबुह ऑपरेशन शुरू किया गया। रेस्क्यू ऑपरेशन में सात सौ से ज्यादा जवान शामिल थे। इस टीम का सामना नक्सलियों की तीन अलग-अलग मिलिट्री कंपनी से हुआ था। इसमें तीन सौ से ज्यादा हथियारबंद नक्सली थे।

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