17 साल का हुआ झारखंड : भूख और कुपोषण से नहीं मिला छुटकारा
17 साल का हुआ झारखंड : भूख और कुपोषण से नहीं मिला छुटकारा
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रांची. बिहार से अलग राज्य बनने के बाद लगा था कि झारखंड आर्थिक समृ़द्धि की नई परिभाषाएं गढ़ेगा लेकिन 17 साल बाद भी राज्य में भूख से मरने जैसी ख़बरें हमेश सुर्खियों में बनी रहती है. देश के 40 प्रतिशत खनिज संपदा से लैस इस राज्य में आज भी लगभग 40 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं. वहीं लगभग 20 प्रतिशत शिशु और बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.

अलग राज्य बनने के बाद हर किसी ने यही सोचा था अब खुशियां, उम्मीदें, आकांक्षाओं के पंख लगेंगे. लेकिन भोगौलिक और प्रशासनिक अधिकार मिलने के बाद भी संतुलित, समग्र विकास और बेहतर भविष्य के भरोसे पर संशय के भाव नजर आते हैं.

कई रिपोर्टों में झारखंड में बच्चों व महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी दयनीय स्थिति की पुष्टि हो चुकी है. हाल ही में झारखंड के सिमडेगा जिले में आधार कार्ड नहीं होने के चलते राशन न मिलने से भूख से एक बच्ची की दिल दहला देने वाली मौत की खबर सामने आई थी. ऐसे में कोई राज्य कैसे विकास कर सकता है. वहीं मुख्यमंत्री रघुबर दास ने भी माना है कि कुपोषण झारखंड की बड़ी समस्या है. 

पिछले 17 सालों में कई घोटालों ने राज्य को विकास के मामले में पीछे धकेला. यही वजह है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार सभी मामलों में झारखंड काफी पीछे है. भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थ‍िरता का सबसे ज्यादा असर मैन्युफैक्चरिंग और खनन क्षेत्र पर पड़ा है. राज्य के जन्म के समय इसे एक मैन्युफैक्चरिंग और खनन केंद्र के रूप में जाना जाता था.

नक्सलवाद की वजह से बिगड़े औद्योगिक माहौल के अलावा कई बड़े प्रोजेक्ट सालों से पीछे चल रहे हैं या फिर लटके हुए हैं. वहीं आंकड़ों के अनुसार झारखंड जब बना तब राज्य के 14 जिले नक्सल प्रभावित थे. ऐसे जिलों की संख्या अब बढ़कर 18 हो गई है. हालांकि बीच के कुछ सालों में यह 21 तक पहुंच गई थी, लेकिन केंद्र सरकार के दबाव और सुरक्षा बलों की कार्रवाई के बाद कुछ जगहों से नक्सलियों का सफाया हुआ है.

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