नई दिल्ली : कभी ऐसा हुआ की किसी ने अबॉर्शन के लिए इजाजत मांगी और कोर्ट ने उस पर सहमति दी हो, नही ना. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा की- मैं तुम्हारे साथ हु और अगर मैं भी तम्हारी जगह होता तो यही करता.
एक तरफ कानून और दूसरी तरफ मासूम ज़िंदगी ने सुप्रीम कोर्ट को मज़बूर कर दिया है निर्णय लेने पर. मामला है गुजरात की 14 वर्षीय रेप पीड़ित का. सुप्रीम कोर्ट 24वें हफ्ते में पीड़िता को अबॉर्शन की इज़ाज़त दे सकता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट पर दो चुनौतियां है. पहली यह की लड़की इस बच्चे को जन्म नही देना चाहती और दूसरी यह की ऐसा करने की कानून इसकी परमिशन नही देता.
लड़की ने कोर्ट के सामने अपना मत रखा की अगर उसे अबॉर्शन की इज़ाज़त नहीं मिलती है तो उसकी ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के अनुसार एक महिला 20 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के बाद अबॉर्शन नहीं करवा सकती. हालांकि, 20 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के दौरान भी मां को जान का खतरा होने पर अबॉर्शन कराने की इजाजत नहीं है.
वर्तमान कानून को देखते हुए जस्टिस एआर. दवे और जस्टिस कुरियन जोसेफ की बेंच के सामने सवाल यह है कि लड़की को अगर बच्चे को जन्म देती है तो उसे सोसाइटी में परेशानी हो सकती है. बेंच ने लड़की की दिक्कतों को सुनकर इससे सहमति भी जताई. सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों की एक टीम को लड़की की पूरी मेडिकल जांच का ऑर्डर देते हुए कहा कि वह यह पता लगाए क्या प्रेग्नेंसी से लड़की की जिंदगी पर कोई खतरा तो नहीं होगा.