काठमांडू: हाथी संसार की एक ऐसी प्रजाति है जो लोगों को भी बहुत ही पसंद होती है. हाथी अपने जीवन को बड़ी ही खुशहाली के साथ जीते है, और क्या आप जानते है कि हाथी कभी भी किसी बात और वस्तु को नहीं भूलते है. वहीं अभी अभी खबर मिली है कि अब हाथियों को नेपाल की आबोहवा कुछ खास पसंद नहीं आ रही है. वहीं करीब ढाई साल में उत्तर प्रदेश में हाथियों की संख्या में 120 की वृद्धि देखने को मिली है. नेपाल और उत्तराखंड से सटे यूपी के जंगलों में इनकी संख्या बढ़कर 352 हो चुकी है. इसे जंगल, पर्यावरण और वन्यजीवों के लिहाज से अच्छा संकेत माना जा रहा है.उत्तर प्रदेश में फॉरेस्ट कवर बढ़ने के बाद यह एक और अच्छी खबर आई है. 6, 7 व 8 जून को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में एक साथ हाथियों की गणना की गई थी. इसके पीछे की मंशा यह रही कि एक ही हाथी दोनों जगह न गिन लिया जाएं. वन एवं वन्य जीव विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल से सटे दुधवा और कतर्नियाघाट के जंगलों में 149 हाथी पाए गए.
अभी तक मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखंड से लगे शिवालिक के जंगलों में 18, अमानगढ़ में 82 और नजीबाबाद (बिजनौर) में 103 हाथी मिले. इस तरह से इनकी कुछ संख्या 352 के लगभग सामने आई है. वहीं जिसके पहले वर्ष 2017 में हुई गणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में हाथियों की संख्या 232 थी. वन एवं वन्य जीव विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में पाए जाने वाले हाथी सामान्यत: प्रवासी (माइग्रेट्री) होते हैं. वे नेपाल या उत्तराखंड से यूपी में आते हैं. जंहा यह भी कहा जा रहा है कि पहले हाथी गन्ने के सीजन में दो-चार महीने आकर वापस लौट जाते थे, पर इधर कुछ वर्षों से वे यूपी में ज्यादा रुक रहे हैं. नेपाल से सटे यूपी के जंगलों में अच्छी-खासी संख्या में ऐसे हाथी हैं, जो अब नेपाल नहीं लौट रहे हैं. इसकी वजह भारत-नेपाल सीमा पर नेपाल की ओर सड़क का बनना और जंगलों का बड़े पैमाने पर सफाया माना जा रहा है. इसलिए नेपाल से सटे दुधवा और कतर्नियाघाट में इनकी संख्या अच्छी-खासी है.
इस तरह की जाती है गणना: क्या आप जानते है कि हाथियों को एक दिन में न्यूनतम 200 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. गणना का समय गर्मियों में रखा जाता है, जब पानी के स्थान सीमित होते हैं. जंगल में बड़े जलाशयों पर हाथी दिन में एक बार जरूर आते हैं. इसलिए इन्हीं जलाशयों के नजदीक वन विभाग की टीम गणना के लिए मौजूद रहती है.
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