दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ जी के समाये यहाँ मोतियों की बारिश हुई थी
दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ जी के समाये यहाँ मोतियों की बारिश हुई थी
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मध्यप्रदेश के बैतूल जिले की भैसदेही तहसील में मुक्तागिरि सिद्ध क्षेत्र स्थित है । यह क्षेत्र पहाडी पर स्थित है तथा क्षेत्र में पहाड पर 52 मन्दिर है तथा पहाड की तहलटी पर 2 मन्दिर है । क्षेत्र पर अधिकतर मन्दिर 16 वी शताब्दी या उसके पश्चात के बने हुये है । क्षेत्र के पहाड पर पहुचने के लिये कुल 250 सिढीयों का उपयोग किया जाता है तथा पूरी यात्रा के लिये लगभग 600 सिढीयों का उपयोग होता है । क्षेत्र पर २५० फुट की ऊँचाई से गिरनेवाला जलप्रपात है । इस जलप्रपात में से जुलाई से जनवरी तक अविरल धारा गिरती रहती है । यह क्षेत्र प्राकृतिक रूप से रमणीक स्थल है । 

मुक्तागिरि में दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ जी का समवशरण आया था । ऐसा भी माना जाता है कि जब भगवान शीतलनाथ जी का समवशरण यहां आया था तब यहां मोतियों की बारिश हुई थी और इसी कारण इस क्षेत्र का नाम मुक्तागिरी दिया गया । इस क्षेत्र से साढे तीन करोड मुनि निर्वाण को प्राप्त होने के कारण यह क्षेत्र सिद्ध क्षेत्र है ।

क्षेत्र पर भगवान पार्श्वनाथ जी के मन्दिर में भगवान पार्श्वनाथ की सप्तफण मण्डित प्राचीन प्रतिमा विरजामान है । लोकमतानुसार इस क्षेत्र में हर अष्टमी, चौदस व पूर्णितमा को केसर की वर्षा होती है ।
 
क्षेत्र पर मन्दिर क्रमांक 10 एक अति प्राचीन मन्दिर है जो कि पहाडी के गर्भ में खुदा हुआ बना है, जो मेढागिरी के नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा विराजमान है । 

लोकमतानुसार प्राचीनकाल में क्षेत्र पर ध्यानमग्न मुनिराज के सामने एक मेढ़ा आकर गिरा था। इस मरणासन्न मेढ़े के कान में ध्यान के पश्चात मुनिराज ने नमोकार मंत्र पढ़ा। जिसके कारण मृत्यु के पश्चात वह मेढ़ा देव बन गया ।

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