हर कहीं होता है जहारवीर गोगादेव जी का पूजन
हर कहीं होता है जहारवीर गोगादेव जी का पूजन
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भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की नवमी को गोगा नवमी के तौर पर मनाया जाता है। इस पर्व पर श्रद्धालु जगह - जगह गोगादेव का पूजन करते हैं। जहारवीर गोगादेव की छड़ियों का चलसमारोह निकाला जाता है। इस बार कई स्थानों पर गुरूवार को श्री गोगादेव जी का छड़ी पूजन हुआ तो कहीं शुक्रवार को भी गोगानवमी मनाई गई। श्रद्धालु गोगा देव जी की छड़ियों को लेकर जगह - जगह निकलते हैं।

भव्य चलसमारोह निकाला जाता है और शहर के सरोवरों के आसपास गोगादेव की छड़ियों का पूजन कर चलसमारोह का समापन किया जाता है। ये छड़ियां जिसे पवित्र निशान के तौर पर जाना जाता है फिर से श्री गोगादेव जी के मंदिरों, विभिन्न आश्रमों और अपने मूल स्थानों की ओर ले जाई जाती हैं। राजस्थान के चुरू जिले के जहाजखेड़ा में श्री गोगादेवजी का जन्म हुआ था। दरअसल गोगादेवी जी हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक माने जाते हैं।

उनका यह धर्मस्थल नाथ सम्प्रदाय के साधुओं के लिए महत्वपूर्ण है तो दूसरी ओर कायम खानी मुस्लिम समाज में वे जहार पीर के नाम से जाने जाते हैं। मध्यकालीन महापुरूष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदाय की श्रद्धा अर्जित कर धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से जाने गए हैं।

दरअसल गोगादेवजी नाथ संप्रदाय के तहत गोरक्षनाथ जी के शिष्य थे तो दूसरी ओर वे एक पराक्रमी योद्धा थे। महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ पर आक्रमण के दौरान इनकी महमूद गजनवी से भी लड़ाई हुई थी। आज भी उनके घोड़े की रकाब उनके स्थान पर मिलती है। यहीं पर स्वामी गोरक्षनाथ जी का भी मंदिर प्रतिष्ठापित है। माना जाता है कि उनके मानने वाले अनुयायी जो भी मन्नत मांगते हैं वह पूरी होती है और फिर वे गोगादेवी जी की छड़ियों का पूजन कर चलसमारोह निकालते हैं। गोगादेव जी के चलसमारोह में देश की संस्कृति की अलग ही झलक नज़र आती है।

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