'जयपूरी रजाई'..चादर विरासत की !!
'जयपूरी रजाई'..चादर विरासत की !!
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मानव सभ्यता का जब से आरम्भ हुआ है तबसे “कपड़ा” जीवन जीने की दूसरी सबसे बड़ी ज़रूरत रही है, और यही से शुरू हुआ “कपड़े” का पहनावे के अलावा “अलग से उपयोग”  “पोशाक” से लेकर “चादर” तक का सफ़र| 

इसी सिलसिले में “बिछोने की चादर” ने अपना रूप बदला और अपने अन्दर “रुई सी मुलायम एहसास” और “गर्माहट” लिये अब वो “रजाई” कहलाई और इस तरह “सूती/रेशमी कपड़े में धुनी हुई मुलायम रुई को टांकने की अद्भूत कला अस्तित्व में आई” | रजाई को लोग अब कई नए नाम “गोधडी”, “कन्था”, “राली” से जानने लगे, पर अपनी सुन्दरता, कलात्मकता, और बेहद हलके वजन की विशेषता लिये वो अब “जयपुरी रजाई” के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर हुई| 

सिर्फ “50 से 100 ग्राम धुनी हुई कपास-रुई” को अपने अन्दर समटे हुए “आरामदायक गर्माहट” और “टिकाउपन” लिये सालो साल चलती है| आकर्षक रंग और डिज़ाइन लिये वाजिब कीमतों पर (500 – 10,000 रू) में हर साइज़ में बाज़ारों में उपलब्ध है | “रुई” के अलावा आजकल “फाइबर”, “होजयरी” एवम “इम्पोर्टेड पोलिफिल्” की रजईयाँ भी बनने लगी है, पर परंपरागत जयपुरी रजाई की बात ही अलग है | ज़रूरत और हालत ने “जयपुरी रजाई” को ठण्ड और बरसात के दिनों के लिये आवश्यक कर दिया | आएये देखे कुछ आम-औ-ख़ास जयपुरी रजाईयों के कुछ बेहतरीन नमूने|

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