मुंबई : मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा मुंबई की शान और लोकप्रिय धार्मिक स्थल हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित हटाने से इंकार कर दिया गया है। न्यायालय ने इस मसले को ट्रस्ट पर छोड़ दिया है। उच्चन्यायालय द्वारा अपने एक निर्णय में कहा गया है कि न्यायालय इस तरह के धार्मिक मसलों पर अपना निर्णय नहीं देगी। न्यायालय ने कहा कि एक तरह से यह इन्टाॅलरेंस का दौर है।
दरअसल इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति वीएम कनाडे और रेवती मोहित की बेंच ने कहा कि सामान्यतः न्यायालय ऐसे मसलों में दखल नहीं देता है। इस तरह के मसले पर ट्रस्ट स्वयं ही निर्णय ले तो बेहतर है। हालांकि न्यायालय ने यह भी कहा कि यह असहिष्णुता का दौर है। हाजी अली दरगाह 15 वीं शताब्दी की कही जाती है।
इस दरगाह का प्रबंधन दरगाह ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। वर्ष 2012 में यहां पर महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। नूरजहां नियाज और जाकिया सोमन ने याचिका दायर कर इस तरह के प्रतिबंध को हटाए जाने की मांग भी की। उनकी मांग थी कि दरगाह में महिलाओं को प्रवेश दिया जाना चाहिए। दरगाह ट्रस्ट द्वारा प्रतिबंध हटाने का बचाव भी किया गया। न्यायालय का कहना था कि ट्रस्ट को स्वयं इस तरह के मसले सुलझाने होंगे।
उल्लेखनीय है कि ऐसा ही एक मामला तब सामने आया था जब पारसी पंचायत द्वारा भी पारसी महिलाओं के दूसरे धर्म में विवाह करने के बाद मंदिर में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। न्यायालय ने निर्णय नहीं दिया। इस मामले में भी न्यायालय ने मसला कोर्ट के बाहर ही सुलझाने का सुझाव दिया था।