जानिए, आत्महया के बढ़ते मामलों में क्या कहता है 'विश्व स्वस्थ्य संगठन'
जानिए, आत्महया के बढ़ते मामलों में क्या कहता है 'विश्व स्वस्थ्य संगठन'
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नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक दुनिया भर में आत्महत्या के मामले खतरनाक स्तर तक बढ़ गए हैं. विश्व में प्रतिवर्ष लाखों लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं, जिनमें से लगभग एक लाख लोग जान से हाथ धो बैठते हैं. यह गंभीर स्थिति आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति की भयावहता को प्रदर्शित करती हैं, आखिर क्यों करते हैं लोग आत्महत्या और क्या इस गंभीर मनोरोग को दूर किया जा सकता है ? यह सवाल सभी के मन में उठता है.

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अनेक लोगों का मानना है कि अवसाद (डिप्रेशन) और आत्महत्या जैसी मानसिक समस्याएं सिर्फ अशिक्षित व आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों तक ही सीमित हैं. ऐसी धारणा आत्महत्या के संदर्भ में कुछ फीसदी तक ही सटीक बैठती है. सच्चाई का दूसरा पहलू यह है कि इन दिनों शिक्षित, संभ्रांत व संपन्न वर्ग के लोगों में भी आत्म हत्याओं के मामले भयावह तरीके से बढ़ रहे हैं.

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विशेषज्ञों का कहना है कि किसी शख्स को आत्महत्या से बचाने के लिए आपका डॉक्टर या विशेषज्ञ होना बिलकुल जरूरी नहीं है. आम आदमी जो रोगी के परिजन या उसके संगी-साथी हैं, वे भी अनेक बार बेहतर रूप से रोगी की मदद कर सकते हैं और उनकी जान भी बचा सकते हैं. इस संदर्भ में आत्महत्या की मंशा रखने वाले व्यक्ति की मानसिक स्तिथि को समझना जरूरी है, आत्महत्या की मंशा रखने वाले व्यक्ति की मनोदशा ऐसी रहती है कि वह दिल से तो जीना चाहता है, लेकिन उसे तकलीफों का अंत आत्महत्या में ही दिखता है. इस कारण वह मन के विरुद्ध गलत कदम उठा लेता है, ऐसे में भावनात्मल रूप से उससे जुड़े लोग उसे सहस दे सकते हैं और उसका जीवन बचा सकते हैं.

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