बहुत कम लोग जानते है कि गणपति सिद्धि-सिद्धि के दाता ही नहीं बल्कि महान लेखक भी हैं। गणपति ने ही पौराणिक कथाओं को लुप्त होने से बचाने के लिए वेदव्यास के अनुरोध पर महाभारत को सरल भाषा में लिपिबद्ध किया था। उस समय लेखन सुविधा नहीं होने से ग्रंथों के ज्ञान को वाणी द्वारा ही बताया जाता था। भगवान ब्रह्मा चाहते थे कि दर्शन, वेद तथा उपनिषदों का ज्ञान लुप्त नहीं हो, इसके लिए इसे लिपिबद्ध किया जाए। इसलिए ब्रह्मा ने महर्षि वेद व्यास को महाभारत लिखने की प्रेरणा दी।
विष्णु के अवतार माने जाने वाले वेदव्यास स्वयं महाभारत की घटनाओं के साक्षी थे। साथ ही वे वेदों के भाष्यकार भी थे। वेदों को उन्होंने सरल भाषा में लिखा था। जिससे सामान्य जन भी वेदों का अध्ययन कर सकें। उन्होने 18 पुराणों की भी रचना की थी।
वेद व्यास ने किया था गणपति से अनुरोध
जब ब्रह्मा ने वेदव्यास को महाभारत लिखने के लिए अनुरोध किया, तो व्यासजी ने ऐसे लेखक की मांग की जो उनकी कथा को सुन कर उस लिखता जाए। श्रुतलेख के लिए व्यास ने भगवान गणेश से अनुरोध किया।
गणेशजी ने एक शर्त रखी कि व्यासजी को बिना रुके पूरी कथा का वर्णन करना होगा। व्यासजी ने इसे मान लिया और गणेशजी से अनुरोध किया कि वे भी मात्र अर्थपूर्ण और सत्य बातें, समझ कर लिखें।इसके पीछे उनकी धारणा यह थी कि महाभारत और गीता सनातन धर्म के सबसे प्रामाणिक पाठ के रूप में स्थापित हो।
इसके लिए बुद्धि के देव गणेश का सहयोग बहुत ही महत्वपूर्ण था। इसी कारण महाभारत में वर्णन की गईं घटनाएं सत्य और प्रमाणिक वृत्तांत मानी जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि व्यासजी जो भी श्लोक बोलते थे, गणेशजी उसे बड़ी तेजी से लिख लेते थे। इसलिए व्यासजी ने गणेशजी की गति को धीरे करने के लिए सरल श्लोकों के बाद एक बेहद कठिन श्लोक बोलते थे। जिसे समझने और लिखने में गणेश जी को थोड़ा समय लग जाता था।
इससे व्यासजी को आगे के श्लोक और कथा कहने के लिए कुछ समय मिल जाता था। भगवान गणेश ने ब्रह्मा द्वारा निर्देशित काव्य महाभारत को दुनिया का सबसे बड़ा महाकाव्य कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।