जब अन्ना हज़ारे के पीछे चल पड़ा था पूरा देश, लेकिन क्या पूरा हो गया उनके आंदोलन का मकसद ?
जब अन्ना हज़ारे के पीछे चल पड़ा था पूरा देश, लेकिन क्या पूरा हो गया उनके आंदोलन का मकसद ?
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नई दिल्ली: अन्ना हजारे भारत का एक जाना पहचाना नाम है। इंडियन आर्मी में अपनी सेवाएं देने वाले एवं सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे आज अपना 84वां जन्मदिन मना रहे हैं। उनका जन्म आज ही के दिन 1937 को महाराष्ट्र के रालेगण सिद्दी हुआ था। महाराष्ट्र के एक गरीब मराठा परिवार में जन्में अन्ना को भले ही भारत सरकार ने पद्मविभूषण से सम्मानित किया हो, किन्तु सत्ता की राजनीति में आने के हर ऑफर को इस समाजसेवी ने कभी स्वीकार नहीं किया। अन्ना ने लोकपाल बिल को पास करवाने से लेकर देश को दीमक की तरह खोखला कर रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ तक आवाज बुलंद की थी। उनके इसी जज्बे के कारण लोग उन्हें दूसरा गांधी कहने लगे थे, एक नारा चल पड़ा था ''अन्ना नहीं ये आंधी है, देश का दूसरा गांधी है।''

वहीं अगर अन्ना के बचपन की बात करें तो उनके घर की आर्थिक स्थिति सहीं नहीं होने के कारण वह मुंबई के दादर रेलवे स्टेशन के बाहर फूल बचने काम करते थे। इसके बाद साल 1963 में अन्ना ने इंडियन आर्मी में शामिल हुए। उस वक़्त भारत और चीन का युद्ध चल रहा था। जिसमें भारतीय सेना को शिकस्त का सामना करना पड़ा था। तब सरकार ने लोगों से बड़ी संख्या में सेना शामिल होने की अपील की थी। भारतीय सेना में लगभग 15 साल अपनी सेवाएं देकर उन्होंने वॉलियंटरी रिटायरमेंट ले ली थी।

अन्ना आंदोलन, जिससे वह सबसे ज्यादा मशहूर हुए, यह आंदोलन 5 अप्रैल, 2011 को जंतर मंतर पर शुरू हुआ था, जहाँ अन्ना भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। वे चाहते थे कि भ्रष्टाचारियों को सफाया होना चाहिए। भ्रष्ट नेताओं को कड़ी सजा मिलनी चाहिए और इसके लिए जनलोकपाल ही एकमात्र हथियार है। लगभग चार दिन तक चलने वाली इस भूख हड़ताल से दिल्ली की सत्ता यानी मनमोहन सिंह की सत्ता लड़खड़ाई और विलाशराव देशमुख के माध्यम से अन्ना के अनशन को तुड़वाया गया। उनके इस काम को देखते हुए पूरा देश 'मैं भी अन्ना' का नारा लगाकर उनके साथ हो गया था। इसके अलावा उन्होंने लोकपाल बिल पास करवाने में भी अहम भूमिका निभाई थी। हालाँकि, एक सवाल अब भी खड़ा हुआ है कि, जिन मुद्दों पर समाजसेवी अन्ना हजारे ने आंदोलन किया था, क्या वो सभी पूरे हो गए हैं ? क्या सभी भ्रष्टाचारियों को सजा मिल गई है ? 

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