क्या पाप क्या पुण्य जिसने माना हुआ जीवन धन्य
क्या पाप क्या पुण्य जिसने माना हुआ जीवन धन्य
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मानव जीवन में कर्मों को गति प्रदान करते हुए हम जीवन में किये कर्मों को अच्छे और बुरे में विभक्त करते है जो पाप और पुण्य कहलाते है अच्छे कर्मों से पुण्य और बुरे कर्मों से पाप का घड़ा भरता है. और ये दोनों मानव मन के भाव से ही उत्पन्न होते हैं। जिस प्रकार देव-कर्म और दानव-कर्म होता है, जिस प्रकार सुख-दु:ख का अनुभव होता है, उसी प्रकार पाप और पुण्य भी मन के भाव हैं. आमतौर पर बात की जाए तो  जो काम खुलेआम किया जाए, वह पुण्य है और जो काम छिपकर किया जाए, वह पाप है. श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि सुख और दु:ख, लाभ-हानि, यश-अपयश आदि पाप और पुण्य से ही प्राप्त होते है.

जब तक आपके पुण्य का घड़ा भरा रहेगा सुख आते रहेंगें और इसी तरह पाप भी जो अच्छे कार्य  आरम्भ करने से वे भी क्षीर्ण होने लगते है. क्योंकि न सुख स्थायी है और न दु:ख, न लाभ स्थायी है, न हानि. जो आपको अच्छा नहीं लगता, उसे पाप कहते हो, दानव कहते हो. जो आपको अच्छा लगता है, उसे देवता कहते हो. एक व्यक्ति आज आपके लिए प्रिय है, तो उसका आपको सब कुछ अच्छा लगता है और अगर आपकी बात नहीं मानता है, तो आपको बुरा लगता है. आपका बेटा, पत्नी या जो कोई भी आपके अनुकूल चलता है, तो कहते हैं कि वह बड़ा आज्ञाकारी है, लेकिन ज्यों ही वह कभी आपका विरोध करता है, तो आप उससे घृणा और नफ़रत करने लगते है .

शास्त्रों में लिखा है कि पत्नी अगर सुंदर हो, सुशील हो, पुत्र आज्ञाकारी हो, सेवक आपकी सेवा करता हो, घर में धन-वैभव हो तो इसी संसार में सुख मिलता है. इसी संसार में स्वर्ग है. यह शास्त्रों की भाषा है. पता नहीं किस कारण से ऐसा लिखा गया है, किंतु मानना है कि यदि घर का मालिक दुष्ट और व्यभिचारी हो, तो भी पत्नी व पुत्र उसकी आज्ञा का पालन करते हों, तो यहां स्वर्ग कैसे हो सकता है? स्वर्ग में तो नैतिक लोग रहते हैं. जब मनुष्य अनैतिक आचरण करे, फिर माता-पिता या जो कोई भी हो, उस आचरण में स्वर्ग देखे, तब तो यह अनैतिकता का प्रचार हुआ.

आपके जीवन में किये अच्छे कर्म जैसे पैरोकार,सत्य बोलना, धर्म और नीति के अनुसार अपने कार्यों में रूचि लेना ये सब पुण्य है और गलत कार्य करना जो नीति के विरुद्ध है. जैसे कि झूठ बोलना, अपने कार्य को संपन्न करने के लिए किसी अन्य को परेशान करना या उसके कार्यों में अवरोध उत्पन्न करना ये सब  पुण्य है. आपके जीवन में किये गए प्रत्येक कर्म का लेखा-जोखा अवश्य होता है.

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