उत्तराखंड की भाषा को विलुप्त होने से बचा रहा है वॉट्सऐप
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Dehradun:उत्तराखंड की दीवान सिंह गर्ब्‍याल को अकसर अपनी बात लोगों को समझाने में मेहनत करनी पड़ती है। उत्‍तराखंड के उनके शहर धारचूला में गिनती के लोग ही उनकी भाषा समझ पाते हैं। 84 साल के दीवान सिंह प्राचीन स्‍थानीय समुदाय के सबसे उम्रदराज लोगों में से एक हैं। 'रंग' नामके इस समुदाय की मातृभाषा 'रंगलो' कहलाती है। इस प्राचीन भाषा की कोई लिपि नहीं है, यह सिर्फ बोलने के जरिए ही चलन में है। दीवान सिंह की ही तरह दिल्‍ली के जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय (जेएनयू) में भाषा की प्रफेसर संदेशा रायापा गर्ब्‍याल भी इस समस्‍या से परेशान हैं। वह भी रंग समुदाय की हैं, लेकिन रंग समुदाय पर छपे एक लेख को पढ़ने के बाद से वह इतनी व्‍याकुल हुईं कि उन्‍होंने इस भाषा को फिर से जीवित करने का बीड़ा उठा लिया।

प्रफेसर संदेशा कहती हैं, 'उस लेख में रंग समुदाय और उनकी संस्‍कृति के बारे में गलत तथ्‍य दिए हुए थे। ऐसे पलों में हमें दस्‍तावेजों की अहमियत का अहसास होता है।' इसके बाद संदेशा ने समुदाय के दूसरे लोगों से आपस में जुड़ने की अपील की हैं। जल्‍द ही कई वॉट्सऐप ग्रुप बन गए जहां लोग रंगलो भाषा में ऑडियो रिकॉर्डिंग पोस्‍ट करने लगे। कुछ लोग ट्विटर और फेसबुक पर रंगलो में पोस्‍ट लिखने लगे। रंग कल्‍याण संस्‍थान के अध्‍यक्ष बीएस बोनल कहते हैं, 'रंग समुदाय में करीब 10, 000 सदस्‍य हैं जिनमें से अधिकांश उत्‍तराखंड के पिथौरागढ़ जिले और नेपाल के कुछ हिस्‍सों में रहते हैं।' भारत में रंग को भोटिया जनजाति की उप जाति के रूप में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला हुआ है। बोनल रंग जनजाति की उत्‍पत्ति को एक किंवदंती से जोड़ते हुए बताते हैं, 'जब पांडव हिमालय यात्रा पर थे तो वे कुटी गांव पहुंचे जहां रंग कबीले ने उनका स्‍वागत किया था। उनकी मां कुंती के नाम पर ही गांव का नाम कुटी पड़ा।'


साल 2018 में ओएनजीसी ने रंगलो के संरक्षण के लिए रायापा के प्रोजेक्‍ट को फंड दिया था। किसी भी भाषा के संरक्षण में सबसे बड़ी समस्‍या होती है उसका लिपिबद्ध न होना। लेकिन लिपि तैयार करना भी आसान नहीं है। रायापा कहती हैं, 'पहली चुनौती है इस भाषा के लिए लिपि का चुनाव। इसके बाद समुदाय के लोगों से बात करके इसका शब्‍दकोश तैयार करना है। युवा लोग इसे रोमन में लिखने की मांग कर रहे हैं जबकि बुजुर्ग इसे देवनागरी लिपि में तैयार करने पर जोर दे रहे हैं। लेकिन लोग फिलहाल दोनों तरीकों का इस्‍तेमाल कर रहे हैं।'

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