style="color: rgb(0, 0, 0); font-family: Arial, Tahoma, Verdana; font-size: 14px; line-height: 20px; text-align: justify;">भारत को संविधान देने वाले डॉ. भीमराव आंबेडकर अनन्य कोटि के नेता थे, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र भारत के कल्याण के लिए लगाया. भारत के 80 फीसदी दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. आंबेडकर के जीवन का संकल्प था. आंबेडकर का जनम 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू में हुआ था. उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था.
उनके व्यक्तित्व में स्मरण शक्ति की प्रखरता, बुद्धिमत्ता, ईमानदारी, सच्चाई, नियमितता, दृढ़ता, प्रचंड संग्रामी स्वभाव का मेल था. बाबा साहब ने कहा, वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहीन करना होगा. समाजवाद के बिना दलित-मेहनती इंसानों की आर्थिक मुक्ति संभव नहीं. समाज को श्रेणीविहीन और वर्णविहीन करना होगा ऐसी उनकी सोच थी, क्योंकि इसी श्रेणी ने इंसान को दरिद्र और वर्ण ने इंसान को दलित बना दिया. जिनके पास कुछ भी नहीं है, वे लोग दरिद्र माने गए और जो लोग कुछ भी नहीं है वे दलित समझे जाते थे.
हम हैं दरिया, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ निकल जाएंगे, वहीं रास्ता बना लेंगे.
यही उक्ति डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन संघर्ष का प्रतीक है. फिर बाबा साहेब ने संघर्ष का बिगुल बजाकर आह्वान किया, "छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, अधिकार वसूल करना होता है. उन्होंने कहा - हिन्दुत्व की गौरव वृद्धि में वशिष्ठ जैसे ब्राह्मण, राम जैसे क्षत्रिय, हर्ष की तरह वैश्य और तुकाराम जैसे शूद्र लोगों ने अपनी साधना का प्रतिफल जोड़ा है. उनका हिन्दुत्व दीवारों में घिरा हुआ नहीं है, बल्कि ग्रहिष्णु, सहिष्णु व चलिष्णु है.
ऐसे संघर्षवादी भीमराव आंबेडकर को मेधावी छात्र के नाते छात्रवृत्ति देकर 1913 में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेज दिया. अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, दर्शन और अर्थ नीति का गहन अध्ययन बाबा साहेब ने किया. वहां पर भारतीय समाज का अभिशाप और जन्मसूत्र से प्राप्त अस्पृश्यता की कालिख नहीं थी. इसलिए उन्होंने अमेरिका में एक नई दुनिया के दर्शन किए.
डॉ. आंबेडकर ने अमेरिका में एक सेमिनार में "भारतीय जाति विभाजन" पर अपना मशहूर शोध-पत्र पढ़ा, जिसमें उनके व्यक्तित्व की सर्वत्र प्रशंसा हुई. डॉ. आंबेडकर के अलावा भारतीय संविधान की रचना हेतु कोई अन्य विशेषज्ञ भारत में नहीं था. अतः सर्वसम्मति से डॉ. आंबेडकर को संविधान सभा की प्रारूपण समिति का अध्यक्ष चुना गया. 26 नवंबर 1949 को डॉ. आंबेडकर द्वारा रचित (315 अनुच्छेद का) संविधान पारित किया गया.
डॉ. आंबेडकर का लक्ष्य था कि सामाजिक असमानता दूर करके दलितों के मानवाधिकार की प्रतिष्ठा करना. हमारे राजनीतिक क्षेत्र में समानता रहेगी किंतु सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में असमानता रहेगी. जल्द से जल्द हमें इस परस्पर विरोधता को दूर करना होगी. वर्ना जो असमानता के शिकार होंगे, वे इस राजनीतिक गणतंत्र के ढांचे को उड़ा देंगे. ऐसे महान आदर्श व्यक्तित्व बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर एक विद्वान, समाजसेवी एवं धैर्यवान व्यक्तित्व के धनी थे. बाबासाहेब अम्बेडकर को भारत रत्न(1990) से भी सम्मानित किया गया है, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है