तिल द्वादशी - बड़ा महत्वपूर्ण है पूजन
तिल द्वादशी - बड़ा महत्वपूर्ण है पूजन
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शास्त्रों में षट्तिला एकादशी के बाद का दिन भी बेहद पवित्र माना गा है। तिल द्वादशी के व्रत का विधान शास्त्रों में दिया गया है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को तिल द्वादशी के तौर पर जाना जाता है। तिल द्वादशी को भीष्म द्वादशी या फिर गोविंद द्वादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि पुण्यसलिला नदियों में स्नान और दान हेतु विशेष पुण्य मिलता है।

प्रातःकाल स्नान से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेना होगा। इसके बाद उत्तर दिशा की ओर मुंह कर भगवान विष्णु की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए। प्रतिमा न हो तो फोटो का पूजन किया जाना चाहिए। भगवान को पंचामृत से अभिषेक करवाकर मौली, फल, फूल, रौली, अक्षत, धूप, गंध आदि अर्पित करना होगा। भगवान को तिल से निर्मित लड्डुओं का भोग भी लगाना होगा। भगवान की आराधना करते हुए पीले वस्त्र भी पहनने चाहिए।

व्रत वाले दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करना होगा। इससे भगवान प्रसन्न होते हैं। यही नहीं श्रद्धालु तिलों का दान भी करते हैं। मान्यता है कि प्रत्येक दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों और ब्राह्मणों को दान दिया जाना जरूरी है। इसके बाद भी त्रयोदशी पर पूजन किया जाता है। दरअसल पूरा माघ मास भी बेहद पवित्र होता है।

ब्रह्म पुराण के अनुसार तिल द्वादशी के स्नान, प्रसाद, हवन दान और भोजन आदि करने का विधान है। भगवान श्रीकृष्ण को स्मरण कर माघ मास में श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर पितृ तर्पण भी करते हैं। माना जाता है कि इससे पितृ तृप्त होते हैं। 

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