जो वास्तु के नियम अपनाते है वो जीवन में सफलता पाते है
जो वास्तु के नियम अपनाते है वो जीवन में सफलता पाते है
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हम अपने जीवन में बहुत सी समस्याओं में उलझे रहते है. और उन आई समस्याओं का कारण भी नहीं जान पाते . कई बार आपने भी यह कहावत सूनी होगी और शायद आप भी कह देते है. की हम इतना फूक- फूक के पैर रखते है. इसके बाबजूद भी हमारे जीवन में समस्या आ रही है. हर सुबह कोई न कोई समस्या अपने साथ लाती है. हम इस आई समस्या की वास्तविकता को नहीं जान पाते जो की वास्तु दोष के कारण उपजती है .

पर आप इस समस्या से घबराये नही इस वास्तु दोष के कारण आई समस्या का सरलता के साथ निवारण हो जाता है . सर्वप्रथम आप अपने घर को साफ सुथरा रखें अपने मुख्य द्वार के सामने सफाई रखना बेहद  जरूरी है .

पूर्व दिशा -

इस दिशा के प्रतिनिधि देवता सूर्य हैं. सूर्य पूर्व से ही उदित होता है. यह दिशा शुभारंभ की दिशा है. भवन के मुख्य द्वार को इसी दिशाएं में बनाने का सुझाव दिया जाता है. इसके पीछे दो तर्क हैं. पहला- दिशा के देवता सूर्य को सत्कार देना और दूसरा वैज्ञानिक तर्क यह है कि पूर्व में मुख्य द्वार होने से सूर्य की रोशनी व हवा की उपलब्धता भवन में पर्याप्त मात्रा में रहती है.

उत्तर दिशा -  इस दिशा के प्रतिनिधि देव धन के स्वामी कुबेर हैं. यह दिशा ध्रुव तारे की भी है. आकाश में उत्तर दिशा में स्थित ध्रुव तारा स्थायित्व व सुरक्षा का प्रतीक है. यही वजह है कि इस दिशा को समस्त आर्थिक कार्यों के उत्तम माना जाता है.

उत्तर-पूर्व-  इसे ईशान कोण भी कहते है यह दिशा बाकी सभी दिशाओं में सर्वोत्तम दिशा मानी जाती है. उत्तर व पूर्व दिशाओं के संगम स्थल पर बनने वाला कोण ईशान कोण है. इस दिशा में कूड़ा-कचरा या शौचालय इत्यादि नहीं होना चाहिए. ईशान कोण को खुला रखना चाहिए या इस भाग पर जल स्रोत बनाया जा सकता है.

पश्चिम -  यह दिशा जल के देवता वरुण की है. सूर्य जब अस्त होता है, तो अंधेरा हमें जीवन और मृत्यु के चक्कर का एहसास कराता है. यह बताता है कि जहां आरंभ है, वहां अंत भी है. शाम के तपते सूरज और इसकी किरणों का सीधा प्रभाव पश्चिमी भाग पर पडता है.

दक्षिण दिशा - यह दिशा मृत्यु के देवता यमराज की है. दक्षिण दिशा का संबंध हमारे भूतकाल और पितरों से भी है. इस दिशा में अतिथि कक्ष या बच्चों के लिए शयन कक्ष बनाया जा सकता है. दक्षिण दिशा में बॉलकनी या बगीचे जैसे खुले स्थान नहीं होने चाहिएं. 

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