'ये मंदिर किसी के बाप की संपत्ति नहीं है', मोहित पांडे को राम मंदिर का मुख्य पुजारी बनाने पर लोगों ने उठाए सवाल, जानिए किस आधार पर हुआ चयन?
'ये मंदिर किसी के बाप की संपत्ति नहीं है', मोहित पांडे को राम मंदिर का मुख्य पुजारी बनाने पर लोगों ने उठाए सवाल, जानिए किस आधार पर हुआ चयन?
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लखनऊ: अयोध्या में प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर के लिए पुजारियों का चयन किया गया है। इसके लिए लोगों से बाकायदा आवेदन आमंत्रित किए गए थे, जिसमें 3000 लोग सम्मिलित हुए। पुजारियों के लिए कुछ मापदंड भी तय किए गए थे, साथ ही उन्हें कड़ी चयन प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। इस पूरी प्रक्रिया में 200 आवेदकों का साक्षात्कार हुआ, जिसमें से 50 उम्मीदवारों को पुजारी पद के लिए चुना गया। इस बीच, सोशल मीडिया पर खबर तेजी से फैली कि मोहित पाण्डेय को मुख्य पुजारी के रूप में चुना गया है। वहीं सवाल ये भी उठे कि इस पद के लिए ब्राह्मण का ही चयन क्यों हुआ?

कुछ लोकप्रिय लोगों ने मोहित पाण्डेय का नाम सुनते ही सोशल मीडिया पर SC और OBC कार्ड खेलना शुरू कर दिया, जिसमें उनके चयन को ब्राह्मणवाद से जोड़ा जाने लगा। मूकनायक जैसे दलित पोर्टल ने पोस्ट किया है कि “राम मंदिर के पुजारी बनेंगे मोहित पांडे!” – क्या दलितों का पुजारी बनना मना है? दिलीप मंडल नाम के वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा, “ये मंदिर भारत सरकार का ट्रस्ट बना रहा है। किसी के बाप की संपत्ति नहीं है। मंदिर प्रबंधन में रिज़र्वेशन न दिया गया तो आंदोलन होना चाहिए। दक्षिणा सब देंगे और केवल सारा पैसा एक जाति के लोग निकालेंगे, ये नहीं चलेगा।” सूरज यादव नाम के एक्स उपयोगकर्ता ने तंज भरे अंदाज में लिखा, “हिन्दू है तो चयनित हुआ। दलित, पिछड़े, आदिवासी हिन्दू नहीं हैं, यह ध्यान रहे। शूद्र, अति शूद्र, जाति प्रथा से बाहर लोगों को न तो ट्रस्ट में स्थान है और न ही पूजा स्थल में। और यह उन यादवों के लिए खास तौर से जो मनुवाद या ब्राह्मणवाद के समर्थक हैं।”

विशेष बात ये है कि मोहित पाण्डेय के रामलला मंदिर के पुजारी बनने पर जो लोग उंगली उठा रहे हैं, उन्हें न तो प्रक्रिया का पता है तथा न ही इस बात की जानकारी है कि मोहित पाण्डेय को किस योग्यता के चलते मुख्य पुजारी के पद चयनित किया गया है। दरअसल, रामलला के मंदिर में पुजारी बनने के लिए आवश्यक शर्त रखी गई थी कि अभ्यर्थी को किसी मान्यता प्राप्त गुरुकुल से वेद, शास्त्र और संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए। अभ्यर्थी को रामानंदीय परंपरा में दीक्षित होना चाहिए। ऐसे में सभी पुजारियों के चयन के चलते हुए साक्षात्कार में वेद, कर्मकांड और वैदिक मंत्रों के ज्ञान पर ध्यान दिया गया। इसके लिए आयु सीमा अधिकतम 30 साल निर्धारित की गई थी। भले ही उनका चयन मुख्य पुजारी के रूप में हुआ है, फिर भी मुख्य पुजारी की भूमिका निभाने से पहले उन्हें लंबे प्रशिक्षण से गुजरना होगा, जिसकी अवधि 6 महीने है। अब प्रशिक्षण के चलते उन्हें वेद, कर्मकांड, वैदिक मंत्रों और रामायण के ज्ञान की गहन शिक्षा दी जाएगी। इस प्रशिक्षण के पश्चात् ही पुजारी रामलला की पूजा-अर्चना का कार्य कर सकेंगे।

किस आधार पर हुआ चयन?
अब चूँकि, रामलला की पूजा अर्चना के लिए नियुक्त किए जा रहे पुजारियों के लिए उक्त मापदंड तय किए गए थे, जिसमें रामनंदीय परंपरा का विद्वान होना आवश्यक था, साथ ही उन्हें वेद, शास्त्र और संस्कृत में विशेषज्ञता रखना आवश्यक था… ऐसे में जाहिर है कि सभी अभ्यर्थियों की परीक्षा हुई होगी। अब यदि इस परीक्षा में मोहित पाण्डेय पास हुए तो इसमें जाति-धर्म का कोई मामला कैसे आया, उनका चयन तो काबिलियत के आधार पर हुआ है न। जानकारी के लिए बता दें कि मोहित पाण्डेय ने गाजियाबाद के दूधेश्वर वेद विद्यापीठ में 7 वर्षों तक अध्ययन किया है। उन्होंने तिरुपति स्थित तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम से संबद्ध श्री वेंकटेश्वर वैदिक विश्वविद्यालय से शास्त्री (स्नातक) की उपाधि हासिल की। इसी वर्ष (2023 में ही) उन्होंने सामवेद का अध्ययन करते हुए मास्टर डिग्री हासिल की है। वह रामानंदीय परंपरा के विद्वान भी हैं तथा उन्हें वेद, शास्त्र और संस्कृत में विशेषज्ञता भी प्राप्त है। इसी प्रकार से अन्य चुने गए पुजारियों में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के युवा सम्मिलित हैं। सभी पुजारी रामानंदीय परंपरा से संबंधित हैं और उन्हें वेद, शास्त्र और संस्कृत में विशेषज्ञता प्राप्त है।

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