जगदलपुर के सिरिसगुड़ा के लखेश्वर भैश्वर नाम के व्यक्ति रहते है और कबतूरों का व्यवसाय करते है. लखेश्वर भैश्वर ने बाकायदा कबतूरों के लिए 75 हजार रुपए खर्च कर पक्का मकान बनवाया हैं उनका कहना है कि बस्तर के कई हिस्सों में कबूतर की पूजा होती है और देवियों को कबूतर भेंट करना लोग शुभ मानते हैं इसलिए वे पूजा सामग्री के रूप में कबूतर पाल रहे हैं.
कबतूर पालने को लेकर लखेश्वर का कहना है कि बस्तर में अनूठी परंपरा है कि जितने कबूतर खरीद कर लाते हैं उतने रुपये में ही कबूतर को बेचते हैं. इसके पीछे लोक मान्यता है कि खरीदी से अधिक दर पर इन्हे बेचने पर कबूतर बेचने वाले पर कर्ज बढ़ता है. कबूतर पालने का शौक और देवी- देवता के लिए कबूतरों की मांग को देखते हुए यह व्यवसाय अपनाया हैं, इसलिए 75 हजार रुपए खर्च कर पेवा कुड़िया बनवाए हैं. बीते तीन साल में वे सौ रुपए की दर से दो सौ कबूतर बेच चुके हैं. बस्तर के भैसगांव-घोटिया इलाके में कुछ घरों में 500 से ज्यादा कबूतर है लेकिन किसी ने इस तरह पक्का परेवा कुड़िया नहीं बनवाया है. बस्तर में कबूतरों के प्रति ग्रामीणों में काफी सम्मान है और कबूतर पालना सौभाग्य का प्रतीक मानते हैं.
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