महाशिवरात्रि पर व्रत उद्यापन के लिए शिवपुराण में दिए ये नियम
महाशिवरात्रि पर व्रत उद्यापन के लिए शिवपुराण में दिए ये नियम
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महाशिवरात्रि पर रखे जाना वाले  व्रत की बहुत मान्यता है की व्रत भगवान भूपति को प्रसन्न करने के लिए किया जाने वाला सबसे प्रमुख व्रत है। मान्यता यह है  की शिवरात्रि पर किये जाने वाला व्रत जो की फागुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर किया जाता है यह  साल के सावन सोमवार एंड सोमवार के व्रत  से भी ज्यादा लाभ दायक साबित होता है इसका कारण यह है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ सृष्टि में पहली बार अग्नि लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। साथ ही महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव ने माँ पार्वती के साथ विवाह रचाया था। इसलिए महाशिवरात्रि को प्रकृति और पुरुष, शिव और शिवा के मिलन का दिन कहा जाता है।

महाशिवरात्रि के दिन  शिवजी और देवी पार्वती का सच्चे मन से ध्यान लगाना चाहिए इससे महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर प्रकृति एकाकार होती है जो भी भक्त महाशिवरात्रि का व्रत पूरी निष्ठां से रखता है ऐसा मना जाता है की भगवन शिव उनको क्षमा कर देते है और साथ ही वह सभी सुखो को भोग कर स्वर्ग में जाता है इसलिए भूपति भक्त महाशिवरात्रि का इंतजार साल भर बड़े उत्साह के साथ करते है 

ऐसा मन जाता है की यदि आप पहले से महा शिवरात्रि का व्रत रखते आए है तो इस व्रत को लगभग १४ वर्ष तक करना चाहिए इसके पश्चात् पुरे विधि विधान का साथ उद्यापन करना चाहिए इसके साथ ही भगवान शिव और देवी पार्वती की धूप, दीप, फल, चंदन, बेलपत्र आदि से पूजन करें। इसके बाद ओम नमः शिवाय मंत्र से शिवजी के नाम की माला करे । उसके तत्पश्चात श्रद्धा अनुसार दान करे साथ ही किसी ब्राह्मण को भोजन कराये 

इस तरह शिवजी के महाशिवरात्रि के व्रत का उद्यापन किया जाता है। और स्कंद पुराण में कहा गया है की यदि  आप फागुन माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली महाशिवरात्रि का व्रत करते है हो कहा जाता है की उसकी वापसी माता के गर्भ में नहीं होता है ,इसका तात्पर्य है की आपका सीधा मिलन परमात्मा से हो जाता है 

 

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