1. मोतियाबिंद (Cataracts): आंखों के लेंस विभिन्न दूरियों की वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. समय के साथ लेंस अपनी पारदर्शिता खो देता है. लेंस के धुंधलेपन को मोतियाबिंद कहते हैं. आंखों के लेंस तक प्रकाश नहीं पहुंच पाने के कारण रेटिना आंखों में विजन नहीं बनने देती है और नतीजा हम अंधेपन की ओर पहुंच जाते हैं. आमतौर पर 55 साल की आयु से अधिक के लोगों में मोतियाबिंद होता है, लेकिन अब युवा भी इससे प्रभावित होने लगे हैं. सर्जरी कर आंखों में लेंस लगाना ही इसका एकमात्र इलाज है.
2. ग्लूकोमा (Glaucoma): ग्लूकोमा को काला मोतियाबिंद भी कहते हैं. कॉर्निया के पीछे आंखों को पोषण देने वाला तरल पदार्थ होता है जो यह तय करता है कि आंखों के भीतरी हिस्से में कितना दबाव रहे. जब ग्लूकोमा होता है तब हमारी आंखों में इस तरल पदार्थ का दबाव बहुत बढ़ जाता है. इससे आंखों के ऑप्टिक नर्व्स नष्ट हो जाते हैं और आंखों की देखने की क्षमता खत्म हो जाती है.
3. रेटिना की बीमारी (Retinal disorders): रेटिना आंखों के पीछे पतली-पतली रेखाएं होती है जो कोशिकाओं से निर्मित होती है. आँखों से जब प्रकाश गुजरता है तो रेटिना ही उसको विद्युतीय संवेग में परिवर्तित कर तस्वीर बना कर मस्तिष्क के न्यूरॉन को भेजती है. रेटिना में गड़बड़ी होने के बाद आंखों की देखने की क्षमता कम हो जाती है. डायबिटीज में या फिर उम्र होने के बाद रेटिना कमजोर हो जाती है.