पुराने समय में साधु संतों ने अपने ज्ञान के आधार और कुछ विशेष चिन्हों की रचना की थी. जो खुशहाली प्रकट करने वाले और जीवन में खुशियां भरने वाले थे, इनमे से एक चिन्ह स्वास्तिक का भी है.
वास्तु के हिसाब से भी स्वास्तिक का बहुत महत्त्व बताया जाता है स्वास्तिक को भारत ही नहीं मानते है बल्कि दुसरे देशों में भी इसका ख़ास महत्त्व है, हर जगह इसकी अलग अलग नामो से पूजा की जाती है. नेपाल में इसे हेरंभ के नाम से पूजा जाता है, वर्मा में इसे प्रियेन्ने के नाम से पूजते है ,मिश्र में इसे ऐक्टन के नाम से पूजते है.
मानते है स्वास्तिक हरियाली का प्रतिक होता है. हिन्दू धर्म में स्वास्तिक को स्वभाग्य का प्रतीक माना गया है. स्वास्तिक को भगवान विष्णुऔर सूर्य का आसन माना गया है. स्वास्तिक में चार बिंदिया होती है उन बिंदियों में पृथ्वी, पारवती और अनंत देवताओ का वास होता है. इसे मंगल का प्रतीक माना जाता है . पञ्च धातु का स्वास्तिक बनवा कर चौखट पर लगाने से अच्छे परिणाम मिलते है, स्वास्तिक में नवरत्न में जड़वा के पूर्व दिशा में लगवाने से घर में खुशहाली आती है.