आत्महत्या को न माना जाए जुर्म
आत्महत्या को न माना जाए जुर्म
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नई दिल्ली : दरअसल कानून विशेषज्ञ और सरकार दोनों ही पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि आत्महत्या करने वाले व्यक्ति पर कानून की कार्रवाई करने और उस पर विभिन्न प्रावधान चलाने व उसे सजा के दायरे में रखने की बात को समाप्त किया जाए। इस मामले में कानून विशेषज्ञों ने सहमति जताते हुए सरकार के साथ सकारात्मक प्रयास करना प्रारंभ कर दिए हैं। दरअसल विशेषज्ञों का मानना है कि इन कानूनों का कोई मतलब नहीं है। हालात ये है कि 156 साल में किसी प्रकार का दोष आत्महत्या करने वाले पर सिद्ध नहीं हुआ है।

विशेषज्ञ चाहते हैं कि इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया जाए। ऐसा आईपीसी की धारा 309 के तहत किया जा सकता है। विशेषज्ञों द्वारा कहा गया है कि कोई भी इस तरह का कदम तभी उठाता है जब कुछ गलत हुआ हो। इस तरह का कदम ऐसे समय उठाया जाता है जब व्यक्ति कुछ समय के लिए मानसिकतौर पर कमजोर हो गया हो। इस मामले में राज्यसभा के सदस्य केटीएस तुलसी ने कहा कि वे इस बात का पूरी तरह से समर्थन करते हैं।

उनका कहना था कि बड़े पैमाने पर लोग तनाव आ जाने से आत्महत्या करते हैं इस तरह के प्रयास बढ़ते जाते हैं। इस मामले में राज्यसभा के सांसद तुलसी ने प्रश्न किया कि आखिर ऐसे व्यक्ति को दंड क्यों दिया जाए जो अपने जीवन को समाप्त कर देना चाहते हैं। पूर्व कानून मंत्री व वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण ने इस मामले में कदम आगे बढ़ाए और कहा कि यदि कोई अपना जीवन समाप्त करना चाहता है तो उसे इसकी अनुमति दे देना चाहिए।

गौरतलब है कि मानसून सत्र में मानसिक स्वास्थ्य बिल 2013 को पारित कर दिया गया है। इस बिल में यह माना गया है कि जब व्यक्ति मानसिक समस्या से पीड़ित होता है तो वह स्वयं की जान लेने का प्रयास काता है।

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