नई दिल्ली: इटली ने चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से आधिकारिक रूप से किनारा कर ड्रैगन को बड़ा झटका दिया है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए इटली का ये फैसला सदमा देने वाला होगा। यह खबर ऐसे वक़्त में सामने आई है, जब हाल ही में दुबई में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 28) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी इतालवी समकक्ष जॉर्जिया मेलोनी की मुलाकात काफी चर्चाओं में रही थी। इस दौरान दोनों के संबंधों में जबरदस्त गर्मजोशी देखी गई थी। मेलोनी ने पीएम मोदी के साथ सेल्फी लेते हुए Melodi हैशटैग के साथ अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट भी किया था।
Good friends at COP28.#Melodi pic.twitter.com/g0W6R0RJJo
— Giorgia Meloni (@GiorgiaMeloni) December 1, 2023
बता दें कि, इटली के इस परियोजना से दूर होने की जानकारी दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन के समय ही आ गई थी। उस वक़्त यह बात सामने आई थी कि चीन के प्रधानमंत्री को इटली ने इस परियोजना से हाथ खींचने के बारे में सूचित कर दिया था। इसी सम्मेलन में चीन-पाकिस्तान जैसे पारंपरिक भारत विरोधियों की नींद उड़ाते हुए पीएम मोदी ने इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट का ऐलान किया था। अब चार महीनों की चर्चा के बाद इटली ने आधिकारिक तौर पर BRI से अलग होने का फैसला कर लिया है। इटली G7 समूह का एकमात्र ऐसा देश था, जो चीन की इस परियोजना से जुड़ा हुआ था। अब उसने चीन के साथ 4 साल पहले किए गए समझौते को निरस्त कर दिया है। इतालवी अखबारों का कहना है कि जॉर्जिया मेलोनी का पीएम पद पर होना इस फैसले का सबसे बड़ा कारण है।
बता दें कि, चीन ने साल 2019 में इटली के साथ यह अनुबंध किया था। जिसके तहत चीन, इटली में 20 बिलियन यूरो (तक़रीबन 18,000 करोड़ रुपए) के प्रोजेक्ट शुरू करने वाला था। इससे दोनों राष्ट्रों के बीच कनेक्विटिविटी को और मजबूत करने का लक्ष्य रखा गया था। इटली ने इससे पहले अक्टूबर में नई दिल्ली में हुई G20 समिट के दौरान ही चीन को यह बता दिया था कि वह आगे और अधिक दिन BRI के साथ नहीं रह सकेगा। इटली का कहना था कि इस पूरे समझौते से उनको वैसे रिजल्ट नहीं मिल रहे हैं, जैसी उन्हें उम्मीद थी।
इटली द्वारा चीन के महत्वकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से बाहर निकलने की आधिकारिक घोषणा।
— Ankit Kumar Avasthi (@kaankit) December 7, 2023
प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी के प्रशासन की तरफ से बीजिंग को इस बारे में सूचित भी कर दिया गया है।
बीआरआई पर हस्ताक्षर करने वाला इटली एकमात्र प्रमुख पश्चिमी देश था।
मेलोनी द्वारा… pic.twitter.com/xTFs13u31F
इटली पर अमेरिका सहित सभी पश्चिमी देशों ने दबाव बना रखा था कि वह चीन के साथ किए गए इस अनुबंध पर आगे ना बढ़े। जॉर्जिया मेलोनी की सरकार आने के बाद इसकी उम्मीदें बढ़ गईं थी कि अब इटली इससे अलग हो जाएगा। इसके लिए पिछले 4 महीने से चीन के साथ गुप्त तौर पर चर्चा चल रही थी। इटली चाहता था कि वह चीन के मार्केट में बड़े पैमाने पर सामान निर्यात करे, किन्तु यह सम्भव नहीं हो सका, क्योंकि 2019 में समझौता करने के तुरंत बाद कोरोना माहमारी आ गई और आवागमन बंद हो गया। इसी बीच चीन की दादागीरी भी देखने को मिली थी। इन सब चीज़ों ने चीन के प्रति इटली का मोहभंग करने में अहम भूमिका निभाई। आख़िरकार पीएम मोदी और पीएम मेलोनी कि #Melodi मुलाक़ात के इटली ने इसका आधिकारिक ऐलान भी कर ही दिया। ये दुनिया में भारत में मजबूत हो रहे संबंधों का एक और उदाहरण है कि, भारत अपने दुश्मनों को किस तरह बिना युद्ध के परास्त कर रहा है।
क्या है चीन का BRI प्रोजेक्ट ?
बता दें कि, बेल्ट एण्ड रोड इनिशिएटिव (BRI) अथवा वन बेल्ट-वन रोड चीन का एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट के जरिए चीन अपने देश को एशिया, अफ्रीका और यूरोप के कई देशों से रोड और रेलवे लाइन के माध्यम से जोड़ना चाहता है। उसका यह प्रोजेक्ट प्राचीन सिल्क रूट का ही आधुनिक रूप है। हालाँकि, चीन इसे व्यापार सुगमता और वैश्विक व्यापार के अवसरों की बढ़ोतरी की एक पहल के रूप में प्रचारित करता है, किन्तु भारत सहित कई देश इसे चीन की एक गहरी साजिश करार देते हैं। एक ऐसी साजिश जिसके तहत चीन अल्पविकसित और विकासशील देशों में विकास के नाम पर उन्हें भारी कर्ज में डुबो देता है और फिर वहां अपनी मनमानी करता है।
इस साजिश का शिकार भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका भी हो चुका है, जहाँ चीन ने हम्बनटोटा बंदरगाह को विकसित किया और जब इसके लिए दिए गए कर्ज को श्रीलंका वापस नहीं लौटा पाया, तो उसने इस बंदरगाह पर ही कब्जा कर लिया। इसके बाद चीन के कर्ज को श्रीलंका वापस नहीं कर पाने के कारण भीषण आर्थिक संकट में भी घिर गया था। इससे पहले पश्चिमी गुट के एक अन्य बड़े मुल्क ऑस्ट्रेलिया ने भी 2021 में BRI से दुरी बना ली थी। ऑस्ट्रेलिया ने कहा था कि वह चीन के साथ 4 समझौतों को निरस्त कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया ने इस फैसले के पीछे राष्ट्रहित को कारण बताया था।
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