मरने के बाद समाधी के लिए किन्नर समुदायों का संघर्ष
मरने के बाद समाधी के लिए किन्नर समुदायों का संघर्ष
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इंदौर। मरने के बाद किन्नर समुदाय में समाधी की प्रथा सदियों से चली आ रही है। किन्नर समुदायों ने सरकार से ज़मीन देने की मांग की है। मरने के बाद एक जगह एक ही समाधी बनाई जाती है। पर किनारो जनसंख्या ज्यादा होने के कारन किन्नर समुदायों को समाधी के लिए जगह कम पड़ रही है। जिसके चलते किन्नर समाज ने सरकार से 2 बीघा ज़मीन देने की मांग राखी है। 

अब तक किन्नर समाज मरने के बाद घर में ही समाधी बनाते आ रहे है। पर अब किन्नरों का कहना है के हमें समाधी की जगह कम पड़ रही है। घर में समाधी न बनाकर घर के बहार समाधी बनाने पर लोगो द्वारा आपत्ति जताई जा रही है। अब इस कारण किन्नर समाज के सामने ज़मीन की समस्या खड़ी हो गयी है, इसके पहले भी किन्नर समाज ने सरकार से शमशान के लिए जगह की मांग की थी। पर कोई निराकरण नहीं हुआ। इस बार कलेक्टर इलैया राजा टी ने उन्हे जल्द से जल्द ज़मीन देने का आश्वासन दिया है। 

किन्नरों का कहना है के पहले किन्नरों की संख्या 30 -40 ही थी। इसलिए ज़मीन की ज़रूरत नहीं थी पर अब किन्नरों की संख्या काफी बड़ गयी है। इसलिए ज़मीन की ज़रूरत बढ़ गयी है। ज़मीन मिलने पर आश्रम व पूजा स्थल भी बनाएंगे। इससे पहले सरकार ने शाजापुर में पहले ही ज़मीन अलॉट कर दी थी। हमारी कोई जाती नहीं होती है ,जीवन भर हमें भिक्षा लेकर ही जीवन जीना पड़ता है। किन्नरों को जीवित देखना जितना शुभ माना जाता है। इसलिए मरने के बाद किन्नरों को आम आदमी के सामने समाधी नहीं दी जाती है। उनकी समाधी की प्रक्रिया सूर्यदय से पहले रात में होती है। 

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