गर्भावस्था से ही शुरू कर दें शिशु की देखभाल
गर्भावस्था से ही शुरू कर दें शिशु की देखभाल
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शीर्षक पढ़कर कई लोगों को बात अजीब लग सकती है; किन्तु यही अजीब बात तो यहाँ समझाई गई है । आमतौर पर माना जाता है कि शिशु की देखभाल तो उसके जन्म के बाद ही शुरू होती है; इसलिए गर्भावस्था में जो भी देखभाल होगी वह तो गर्भवती महिला की होगी । लेकिन, यहाँ समझने की बात यह है कि जब महिला के गर्भ में एक नया जीवन आ चुका है, तो महिला जो कुछ कर रही है उससे, उसके गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर भी अच्छा-बुरा प्रभाव पड़ रहा है । इसलिये, गर्भवती स्त्री को न केवल अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना है; अप्रत्यक्ष रूप से अपने अजन्मे शिशु के स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना है ।

एक गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की दृष्टि से माँ और परिवार के अन्य लोगों निम्नलिखित बातें ध्यान रखना चाहिये:

गर्भवती माँ को पौष्टिक व संतुलित भोजन लेते हुए अपने स्वास्थ्य का अतिरिक्त ध्यान रखना चाहिये; क्योंकि स्वस्थ्य माँ ही स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दे सकती है । चूंकि बच्चा माँ के भोजन से ही पोषण प्राप्त करता है, इसलिए गर्भावस्था के दौरान, महिला के भोजन की कुल मात्रा पहले माह से ही क्रमशः बढ़ते हुए सामान्य से 25-30 प्रतिशत अधिक हो जाना चाहिए ।

भारत में परंपरागत रूप से गर्भवती को अधिक प्रोटीन व वसा वाला भोजन (लड्डू आदि) देने लगते हैं; जो उचित भी है, किन्तु साथ ही फल – सब्जियाँ देना भी उतना ही जरूरी है; इस बात का ख्याल पर्याप्त नहीं रखा जाता है । फल-सब्जियों से मिलने वाले विटामिन व खनिज लवण जच्चा-बच्चा दोनों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं ।

गर्भ में ही बच्चे के दांत व हड्डियों का निर्माण शुरू हो जाता है, जिसके लिए बच्चे को अच्छी मात्रा में केल्शियम मिलना चाहिए । इसके लिए माँ को केल्शियम युक्त खट्टे-मीठे फल प्रतिदिन लेते रहना चाहिए । फलों-सब्जियों से दोनों को अन्य जरूरी खनिज तत्व जैसे लोहा, फास्फोरस, गंधक, ज़िंक आदि भी मिलते रहेंगे ।

गर्भवती को आवश्यकतानुसार आराम करना चाहिए और यथासंभव आरामदायक अवस्था में लेटना चाहिए । एक ही करवट से अधिक समय तक नहीं लेटना चाहिये ।

गर्भवती जिन बातों में अपना समय गुजारती हैं; जैसे TV कार्यक्रम, किताबें, फिल्में, गप-शप, कथा-कीर्तन और आजकल सोशल मीडिया आदि; उन सबका प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर भी पड़ता है । भारतीय विद्वानों की तो यह मान्यता थी ही; आजकल कई पाश्चात्य शोध-कार्यों से भी इस धारणा की पुष्टि हुई है । इसलिए, माँ को अपने आराम के इन दिनों में भी समय को बहुत सावधानी से बिताना चाहिए और यथा-संभव सुरुचिपूर्ण, अच्छे संस्कार देने वाले कार्यों में मन लगाना चाहिये । धार्मिक ही नहीं, आज के समय के अनुकूल भी कई ऐसे अच्छे माध्यम हो सकते हैं, जो माँ में तो सुरुचि जगाए ही, साथ मे भावी शिशु में भी सु-संस्कारों के बीज डालें ।

गर्भावस्था में केवल बिस्तर पर पड़े रहकर, टीवी एवं मोबाइल जैसे साधनों में ही न लगी रहें । कठिन मेहनत के काम जरूर न करें, किन्तु हल्के-फुल्के काम करते हुए फिजिकली एक्टिव भी बनी रहें । अर्थात, मानसिक, सामाजिक व शारीरिक सभी तरह की सक्रियता बनाए रखे ।

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