तो इसलिए द्वार पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है
तो इसलिए द्वार पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है
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प्रथम आराध्य गणेश के जन्म की कहानी रोचक है। पुराणों और धर्म ग्रंथों के अनुसार एक दिन की बात है माता पार्वती स्नान की तैयारियां कर रही थी। उस दिन स्नान गृह के बाहर बैठने के लिए कोई रक्षक नहीं था। उन्होंने चन्दन के उबटन से एक बालक का अवतार बना और उसे आदेश दिया कि उनकी अनुमति के किसी को महल के अन्दर नहीं आने दिया जाए।

वहां शिवजी आते है। उन्होंने देखा की द्वार पर एक बालक खड़ा है। वह अन्दर जाने लगे तो बालक ने उन्हें रोक लिया। शिवजी ने अपना परिचय दिया पर बालक ने उनकी एक नहीं सुनी। यह देख शिवजी नाराज हो गए और उन्होंने उस बालक का सिर काट दिया। जब माता पार्वती को यह बात पता चली तो वह बहुत दुखी हुई और बोली की वह मेरा पुत्र जैसा है। शिवजी को भी अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने अपनी शक्ति से बालक को जीवित करने का वचन दिया।
 
उन्होंने कहा कि गणेश जी को वह जीवित कर सकते है लेकिन, इसके लिए उन्हें किसी जीवित प्राणी का सिर चाहिए। पार्वती के विलाप को देखते हुए उन्होंने नन्दी को आदेश दिया— जाओ और ऐसे किसी प्राणी का सिर लेकर आओ जिसकी माता का मुंह उसकी तरफ नहीं हो। नन्दी को एक हथिनी और उसका बच्चा मिला। दोनों अलग—अलग दिशा में मुंह करके सो रहे थे। नन्दी ने हाथी के बच्चे का सिर काट लिया और उसे लेकर शिवजी के पास पहुंचे। भगवान शिव नें उस सिर को बालक के धड़ के साथ जोड़ दिया और बालक जीवित हो गया। पर माता पार्वती बालक का नया रूप देख कर अभी भी नाराज थी। 

शिवजी ने उन्हें मनाते हुए कहा कि इस बालक का नाम गणेश होगा और अन्य देवताओं से पहले इसकी पूजा होगी। कोई भी नया कार्य करने से पहले इनका स्मरण किया जाएगा।

यहीं वजह है कि आज भी भवनों के प्रवेश द्वार पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है और किसी भी शुभ कार्य से पहले उनका स्मरण किया जाता है। यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि गणेश प्रतिमा के के दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर एक अन्य प्रतिमा इस प्रकार स्थापित की जानी चाहिए कि दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे इससे भवन का वास्तु दोष दूर होता है और घर में समृद्वि बनी रहती है।

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