आज जरूर करें शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ, हर रोग से मिलेगी मुक्ति
आज जरूर करें शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ, हर रोग से मिलेगी मुक्ति
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आप सभी को बता दें कि चैत्र मास के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को शीतला अष्‍टमी मनाई जाती है। जी हाँ और इस दिन घरों में चूल्‍हा नहीं जलाया जाता है और शीतला माता को बासे खाने का भोग लगाकर उसे ही प्रसाद के रूप में खाया जाता है। आप सभी को बता दें कि इस साल आज यानी कि 25 मार्च 2022, शुक्रवार को शीतला अष्‍टमी है। वहीं स्‍कंद पुराण के मुताबिक शीतला माता अपने भक्‍तों की बीमारियों से रक्षा भी करती हैं। कहा जाता है शीतला अष्‍टमी की पूजा करने के बाद शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए। वहीं अगर हर दिन की शुरुआत इस पाठ से करें तो व्‍यक्ति बहुत सकारात्‍मक और रोग मुक्‍त रहता है। तो आइए जानते हैं शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ। 

शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ -


विनियोग:
ऊँ अस्य श्रीशीतला स्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतली देवता, लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्वविस्फोटक निवृत्तये जपे विनियोगः ॥
ऋष्यादि-न्यासः
श्रीमहादेव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीशीतला देवतायै नमः हृदि, लक्ष्मी (श्री) बीजाय नमः गुह्ये, भवानी शक्तये नमः पादयो, सर्व-विस्फोटक-निवृत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ॥

ध्यानः
ध्यायामि शीतलां देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम् ।
मार्जनी-कलशोपेतां शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम् ॥

मानस-पूजनः
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।

मन्त्रः
ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः ॥ [११ बार]

॥ ईश्वर उवाच॥
वन्दे अहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।
मार्जनी कलशोपेतां शूर्पालं कृत मस्तकाम् ॥1॥

वन्देअहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम् ।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत् ॥2॥

शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः ।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति ॥3॥

यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥4॥

शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।
प्रनष्टचक्षुषः पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ॥5॥

शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान् ।
विस्फोटक विदीर्णानां त्वमेका अमृत वर्षिणी ॥6॥

गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।
त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम् ॥7॥

न मन्त्रा नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते ।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम् ॥8॥

॥ फल-श्रुति ॥
मृणालतन्तु सद्दशीं नाभिहृन्मध्य संस्थिताम् ।
यस्त्वां संचिन्तये द्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ॥9॥

अष्टकं शीतला देव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥10॥

श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धा भक्ति समन्वितैः ।
उपसर्ग विनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत् ॥11॥

शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ॥12॥

रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः ।
शीतला वाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ॥13॥

एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न जायते ॥14॥

शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित् ।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति युताय वै ॥15॥
॥ श्रीस्कन्दपुराणे शीतलाअष्टक स्तोत्रं ॥

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