बन्द होने की कगार पर पहुंचा संस्कृत का पहला अखबार
बन्द होने की कगार पर पहुंचा संस्कृत का पहला अखबार
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नई दिल्ली - हम सब जानते हैं कि संस्कृत हमारे देश की आदिकालीन भाषा है. चारों वेद और गीता के अलावा कई काव्य संस्कृत में रचित हुए हैं. लेकिन समय के साथ इसका प्रयोग कम होते जाने से हमारी मूल भाषा तो संकट में है ही इसके प्रचार - प्रसार में सहायक भूमिका निभाने वाले अखबार भी परेशानी के दौर से गुजर रहे हैं. इन्ही में से एक अखबार है - 'सुधर्मा ' जो खस्‍ता आर्थिक हालत के कारण बंद होने की कगार पर पहुंच गया है. इसे न तो विज्ञापन मिल रहे हैं और न ही इसका कोई संरक्षक है

हालांकि इसे बचाने के लिए कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया में अपील की गई थी, जो वायरल हो गई है. हालांकि, अभी इस अपील का सीमित असर हुआ है, लेकिन करीब दो लाख रुपए की मदद अखबार को मिल गई.लेकिन यह राशि इतनी नहीं है कि एक कलर प्रिंटर को खरीदा जा सके. राजनीति, योग, वेद और संस्कृति समेत अन्य खबरों वाले इस एक पन्ने के अखबार का सर्कुलेशन तीन हजार है.इसके ई-पेपर के एक लाख से ज्यादा पाठक हैं, जिनमें ज्यादातर इस्रायल, जर्मनी और इंग्लैंड के हैं. सुधर्मा की तरह और कई संस्कृत अखबार भी ऐसी ही स्थिति से जूझ रहे हैं.

गौरतलब है कि संस्कृत के विद्वान कलाले नांदुर वरदराज आयंगर ने संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए 15 जुलाई, 1970 को यह अखबार शुरू किया था.अब उनके पुत्र और सुधर्मा के संपादक के वी संपत कुमार कहते हैं कि आर्थिक कमी के कारण अखबार की छपाई जारी रखना मुश्किल होता जा रहा है.उन्होंने कहा कि सर्कुलेशन कम हो रहा है क्योंकि सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है. संपत ने बताया कि यह दुखद है कि हम संस्कृत की ऐतिहासिक भूमिका को नहीं समझ पा रहे हैं. जबकि इसे दुनियाभर में साइं‍ट‍िफिक और फोनेटिक साउंड लैंग्वेज के रूप में मान्यता मिल रही है .

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