सड़क पर आए साहित्यकार, तब खुली साहित्य अकादमी की नींद
सड़क पर आए साहित्यकार, तब खुली साहित्य अकादमी की नींद
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नई दिल्ली: शुक्रवार को देश की राजधानी दिल्ली में साहित्यकारों ने विरोध प्रदर्शन किया। लेखक है, इसलिए तरीका भी औरों से जुदा था। हाथों में बैनर लिए और मुहँ पर कपड़े बाँधकर, ये खामोश थे। अपनी कलम से बोलती बंद करने वाले आज सड़क पर विरोध कर रहे है।

तब जाकर साहित्य अकादमी की भी नींद टूटी है और कन्नड़ लेखक कलबुर्गी की हत्या को निंदनीय बताया है। शुक्रवार को अकादमी की आपात बैठक के बाद अकादमी के अध्यक्ष विश्व नाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि लेखकों को अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है, जिसे छीना नहीं जा सकता.

दो दल में बँट गए है

लेखकों की दो टीमें बन गई है। एक टीम अवार्ड लौटाने के पक्ष में है, तो वही दूसरा इसका पुरजोर विरोध कर रहा है। इससे पहले लेखकों के एक खेमे ने सम्‍मान लौटाने वाले लेखकों के विरोध में भी मार्च निकाला। यह राष्‍ट्रवादी विचारधारा के लेखक उनके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे, जिन्‍होंने सम्‍मान लौटाया है।

आपको बता दें कि लेखकों के खिलाफ बढ़ रहे हत्या के मामलों के विरोध में अबतक करीब 31 लेखकों ने साहित्य अकादमी अवार्ड लौटाने का ऐलान किया है। दादरी में अखलाक, उससे पहले सीपीआई नेता गोविंद पनसारे और लेखक कलबुर्गी की हत्या के विरोध के तौर पर कइयों ने अपना अवॉर्ड लौटाना शुरु किया था, जो अब तक मुँह और कलम से लड़ रहे थे, वो अब सड़क पर आ गए है। अवॉर्ड लौटाने वाले लेखकों में उदय प्रकाश, मुन्नवर राणा, नयनतारा सहगल, काशीनाथ सिंह, मंगलेश डबराल, राजेश जोशी और अशोक वाजपेयी भी शामिल हैं।

हांलाकि इस मामले में उर्दू शायर मुन्नवर राणा अगले सप्ताह पीएम से मुलाकात करेंगे।



 



 

 

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