Video: क्या है 'पत्थलगड़ी' के हरे पत्थरों का राज
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दोस्तों आज हम आपको देश में चल रहे एक खास तरह के आंदोलन से आपको रूबरू कराएंगे. जिसका नाम है पत्थलगड़ी. पत्थलगड़ी आंदोलन आदिवासियों समुदाय की एक प्रथा है. एक ऐसी प्रथा जो पत्थरों से जुड़ी है. इस प्रथा की स्थापना कब हुई थी इस बारे में कोई ख़ास जानकारी मिल नहीं पाती लेकिन यह सदियों से चली आ रही है. एक ऐसी प्रथा है जिसमें आदिवासी समुदाय, खासकर मुंडा आदिवासी अपने ख़ास मृतकों की यादों को संजोने के लिए पत्थरों के स्मारक बनाते थे. 
लेकिन अब यह प्रथा एक नए रूप में झारखण्ड के कई गाँवों में देखने को मिल रही है. झारखण्ड की राजधानी रांची से 35 किलोमीटर आदिवासियों ने एक सीमा रेखा खींच दी है. इस सीमा रेखा के बाद कई गाँव बसे हुए है. हर गाँव के बाहर और इस सीमा रेखा के पास आपको हरे रंग के पत्थर दिखाई देंगे, जिसमें संविधान के कुछ बिंदुओं का जिक्र किया गया है.यहाँ के लोग सीमा बनाकर खुद के लिए आदिवसिस्तान की मांग कर रहे है. सामान्य तौर पर झारखण्ड में अड़की के दुरूह जंगलों में, टुटकोड़ा, शाके, समदा, कुरुंगा, मनहातू, टुबिल, लदीबेरा इलाकों में यह आंदोलन जोरो पर है वहीं अब आसपास के दूसरे गाँवों में भी यह तेजी से फैल रहा है. 
इस सीमा रेखा के भीतर किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है, जिस तरह से हमारे देशों की सीमाओं पर आर्मी की पहरेदारी होती है ठीक उसी तरह हथियारों के साथ यहाँ पर आदिवासी लोग गश्त देते है.इतना ही नहीं यहाँ के आदिवासी खुद के बनाए हुए कानून को मानते है और सरकारी नियमों और कानूनों का बहिष्कार करते है. यहाँ पुलिस, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री किसी का भी नियम नहीं माना जाता. इन गाँवों के आदिवासियों ने ग्राम सभा के फैसलों को मानना शुरू कर दिया है. वहीं यहाँ बच्चे भी अब सरकारी स्कूलों में जाने के बजाय ग्राम सभा के अलग स्कूलों में जाते है. थोड़ा अजीब है लेकिन अब यहाँ के आदिवासियों ने प्राचीन काल से चली आ रही इस प्रथा को अब अपने हिसाब से जिन्दा किया है जिसमें यह लोग हिंसा का रास्ता भी अपनाने से कतराते नहीं है. 
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