पुरी धाम मंदिर में मिल जाती हे पुनर्जन्म से मुक्ति
पुरी धाम मंदिर में मिल जाती हे पुनर्जन्म से मुक्ति
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पुरी धाम में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि जो भी यहां रथ खींचते हैं वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष पाते हैं। वे भगवान जगन्नाथ की कृपा के भागी भी बनते हैं।

भारत के ओड़िशा स्थित पुरी नगरी में इन दिनों जगन्नाथ यात्रा की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। वर्ष में एक बार निकलने वाली इस रथ यात्रा का देश और दुनिया के लिए विशेष महत्व है। भारत के चार पवित्र धामों में से एक पुरी के 800 वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्रीकृष्ण जगन्नाथ रूप में विराजते हैं।

उनके साथ यहां बलभद्र एवं सुभद्रा भी हैं। स्कंद पुराण में वर्णित है कि भगवान जगन्नाथ की रथ-यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है।

जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के दर्शन कर, उन्हें प्रणाम कर मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाते हैं वे भगवान श्री विष्णु के उत्तम धाम को प्राप्त होते हैं। जो व्यक्ति गुंडीचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करते हैं वे मोक्ष प्राप्त करते हैं।

रथयात्रा एक ऐसा पर्व है जिसमें भगवान जगन्नाथ चलकर जनता के बीच आते हैं और उनके सुख-दुख में सहभागी होते हैं। सब मनिसा मोर परजा (सब मनुष्य मेरी प्रजा है), ऐसा इस रथयात्रा के द्वारा भगवान व्यक्त करते हैं। वे तमाम धर्मप्रेमियों को अपने आश्रय में लेते हैं और उन्हें आश्वस्त करते हैं कि वे उनके कर्मों को देख रहे हैं। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं। उनमें श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, महायान का शून्य और अद्वैत का ब्रह्म समाहित है। धर्म में श्रद्धा रखने वालों को वे अपनी कृपा से तारते हैं।

जगन्नाथ रथयात्रा दस दिवसीय महोत्सव होता है। यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है। फिर आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को देश-विदेश से लाखों लोग इस पर्व के साक्षी बनने हर वर्ष यहां आते हैं।

इस दिन रथयात्रा प्रारंभ होती है। रथ यात्रा महोत्सव में पहले दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा का रथ शाम तक जगन्नाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थिति गुंडीचा मंदिर तक खींचकर लाया जाता है।

इसके बाद अगले दिन रथ पर रखी जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी की मूर्तियों को विधि-विधान के साथ रथ से उतारकर इस मंदिर में लाया जाता है और अगले 7 दिनों तक श्रीजगन्नाथ जी यहीं निवास करते हैं।

आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन वापसी की यात्रा की जाती है जिसे बाहुड़ा यात्रा कहते हैं। इस दौरान पुन: गुंडीचा मंदिर से भगवान के रथ को खींचकर जगन्नाथ मंदिर तक लाया जाता है।

मंदिर तक लाने के बाद प्रतिमाओं को पुन: गर्भ गृह में स्थापित कर दिया जाता है। जगन्नाथ रथयात्रा एक महोत्सव और पर्व के रूप में पूरे देश में उत्सव रूप में मनाई जाती है।

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