पूनरासर बालाजी का मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है
पूनरासर बालाजी का मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है
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बीकानेर से करीब 60 किलोमीटर और श्रीडूंगरगढ़ से 40 किलोमीटर दूर स्थित पूनरासर बालाजी का मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। यहां बच्चों का जडूला (मुंडन) करने आने वाले भक्तों को बालाजी के लिए तैयार किए जाने वाले प्रसाद चूरमा की कच्ची सामग्री आटा, शक्कर घी और इसे तैयार करने के लिए ईंधन की व्यवस्था पुजारी परिवार की ओर से होती है। मंदिर की पूजा का दायित्व बोथरा परिवार संभाले हुए है। 

इस मंदिर की स्थापना चमत्कारिक बताई जाती है। वर्ष 1774 में बीकानेर और उसके आसपास के इलाकों में भीषण अकाल पड़ा था। पूनरासर गांव भी अछूता नहीं रहा। यहां के कई परिवार रोजी-रोटी की तलाश में पलायन कर गए। इन्हीं में से एक थे जयराम बोथरा। बोथरा कुछ सामान ऊंटनी पर लादकर पंजाब की तरफ जा रहे थे। सामान के बोझ के कारण ऊंटनी का पैर टूट गया। उनके साथियों ने उन्हें वापस गांव जाने की सलाह दी। वह ऊंटनी को लेकर वापस लौट रहे थे तो थकान मिटाने के लिए वे एक पेड़ के नीचे सो गए। अचानक किसी आवाज ने उन्हें जगाया। आसपास देखा तो कोई नहीं था। उन्होंने अपने ईष्ट हनुमानजी का स्मरण किया। तभी वहां एक साधु आया और बोला सामने खेजड़ी के पेड़ के नीचे मूर्ति है उसे ले जाकर स्थापना कर देना। सारे संकट दूर हो जाएंगे। 

जयराम ने वनिक होने के आधार पर पूजा-पाठ करने और अपनी ऊंटनी का पैर टूटने के कारण मूर्ति को वहां से ले जाने की लाचारी बताई। साधु ने कहा कि तुम्हारी ऊंटनी का पैर ठीक है और तूम बिना किसी संकोच के इस मूर्ति की पूजा करना। जयराम ने देखा तो उंटनी ठीक थी। वह मूर्ति को लेकर पूनरासर आ गया और सारी बात अपने परिवार को बताई। उन्होंने साधु के कहे अनुसार मूर्ति की स्थापना कर पूजा शुरू कर दी। कई चमत्कार हुए और यह धाम पूजा जाने लगा। 

यहां साल में तीन बार मेले लगते है। चैत्र और आसोज की पूर्णिमा को यहां मेला लगता है। लेकिन, सबसे बड़ा मेला भाद्रपद में लगता है और बीकानेर तथा आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में लोग पैदल यहां पहुंचते है। मंदिर दिनभर खुला रहता है। यहां पर खेजड़ी के साथ हनुमानजी की प्रतिमा है जिसकी पूजा होती है।

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