समलैंगिक विवाहों के समर्थन में उतरा मनोचिकित्सकों का संगठन, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले कही ये बात
समलैंगिक विवाहों के समर्थन में उतरा मनोचिकित्सकों का संगठन, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले कही ये बात
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नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय की 5 जजों की संविधान पीठ द्वारा भारत में समलैंगिक विवाह की वैधता का फैसला करने से पहले, इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी (IPS) ने रविवार (9 अप्रैल) को समलैंगिक विवाह के समर्थन में एक बयान दिया, जिसमें कहा गया कि LGBTQA लोगों के साथ देश के सभी नागरिकों की तरह समान व्यवहार किया जाए।

रिपोर्ट के अनुसार, 6 सितंबर, 2018 को समलैंगिकता को अपराध घोषित करने वाले अनुच्छेद 377 को निरस्त करने में शीर्ष अदालत में अहम भूमिका निभाने वाले IPS ने कहा कि समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है। बता दें कि, गत माह, भारत के चीफ जस्टिस (CJI) वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं का एक बैच एक संविधान पीठ द्वारा निर्धारित किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई को 18 अप्रैल तक के लिए टाल दिया था। बता दें कि, केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को मान्तया प्रदान करने की याचिका का विरोध किया है और कहा है कि सुप्रीम कोर्ट अब यह निर्धारित करने की "गंभीर जिम्मेदारी" निभाती है कि भविष्य में समाज को कैसे आकार दिया जाएगा।

वहीं, समलैंगिक विवाह पर देश के मनोचिकित्सकों के संगठन ने अपने बयान में कहा है कि, 'भारतीय मनोरोग सोसायटी यह दोहराना चाहेगी कि इन लोगों के साथ देश के सभी नागरिकों जैसा व्यवहार किया जाए, और एक बार नागरिक होने के नाते कोई भी शिक्षा, रोजगार, आवास, आय, सरकार या सैन्य सेवा, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच, संपत्ति के अधिकार, विवाह, गोद लेने और जीवित रहने के अधिकार, आदि सभी नागरिक अधिकारों का लुत्फ़ उठा सकता है।' सोसायटी ने आगे कहा कि यह इंगित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि LGBTQ लोग उपरोक्त में से कोई भी भाग नहीं ले सकते हैं। इसके विपरीत, किसी भी तरह का भेदभाव जो उपरोक्त किसी भी अधिकार तक पहुँचने से रोकता है, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को जन्म दे सकता है।

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