मच्छरों की मौजूदगी ‘डेंगू’ की दस्तक
मच्छरों की मौजूदगी ‘डेंगू’ की दस्तक
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डेंगू रोग का कारण विषाणु मच्छरों द्वारा मानव शरीर में पहुचना हैं। डेंगू एक बीमारी हैं जो एडीज इजीप्टी मच्छरों के काटने से होता हैं। इस रोग में तेज बुखार के साथ शरीर के उभरे चकतो से खून रिसता हैं। डॉ. हरेन्द्र सोढी इससे बचाव को अधिक महत्व देते हुए कहते हैं कि डेंगू बुखार तथा डेंगू हैमरेज ज्वर बहुत तीव्र प्रकार के मांसपेशीय तथा रक्त से जुडे रोग है। ये उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र मे तथा अफ्रीका मे मिलते है। यह चार प्रकार के निकटता से जुडे विषाणु से होते है। जो फ्लैविवायरस गण तथा फ्लैविविराइड परिवार के होते है। बहुधा उन्हीं क्षेत्रों मे फैलता है जिनमे मलेरिया फैलता है, किंतु मलेरिया से पृथकता यह है कि यह शहरी क्षेत्र मे फैलता है। जिनमे सिंगापुर, ताइवान, इण्डोनेशिया, फिलीपींस, भारत तथा ब्राजील भी शामिल है। प्रत्येक विषाणु इतना भिन्न होता है किसी एक से संक्रमण के बाद भी अन्य के विरूद्ध सुरक्षा नहीं मिलती है तथा जहाँ यह महामारी रूप मे फैलता है वहाँ एक समय मे अनेक प्रकार के विषाणु सक्रिय हो सकते है। डेंगू मानव मे एडिस एजेप्टी नामक मच्छर फैलाता है [कभी कभी एडिस एलबोपिकटस से भी] यह मच्छर दिन में काटता है।

लक्षण - यह रोग अचानक तीव्र ज्वर के साथ शुरू होता है,जिसके साथ साथ तेज सिर दर्द होता है ,मांसपेशियों तथा जोडों मे भयानक दर्द होता है जिसके चलते ही इसे हड्डी तोड बुखार कहते है इसके अलावा शरीर पर लाल चकते भी बन जाते है जो सबसे पहले पैरों पे फिर छाती पर तथा कभी कभी सारे शरीर पर फैल जाते है इसके अलावा पेट खराब हो जाना,उसमे दर्द होना। कै होना, दस्त लगना, ब्लेडर की समस्या, निरंतर चक्कर आना, भूख ना लगना भी लक्षण रूप मे ज्ञात है। कुछ मामलों मे लक्षण हल्के होते है जैसे चकते ना पडना, जिसके चलते इसे इंफ्लुएंज का प्रकोप मान लिया जाता है या कोई अन्य विषाणु संक्रमण, यदि कोई व्यक्ति प्रभावित क्षेत्र से आया हो और इसे नवीन क्षेत्र मे ले गया हो तो बीमारी की पहचान ही नहीं हो पाती है रोगी यह रोग केवल मच्छर या रक्त के द्वारा दूसरे को दे सकता है वह भी केवल तब जब वह रोग ग्रस्त हो।

शास्त्रीय तौर पर ये ज्वर 6-7 दिन रहता है ज्वर समाप्ति के समय फिर से कुछ समय हेतु ज्वर आता है। जब तक रोगी का तापक्रम सामान्य नहीं होता है तब तक उसके रक्त मे प्लेटलेट्स की संख्या कम रहती है। जब डेंगू हैमरेज ज्वर होता है तो ज्वर बहुत तेज हो जाता है रक्तस्त्राव शुरू हो जाता है। रक्त की कमी हो जाती है। थ्रोमबोसाटोपेनिया हो जाता है। कुछ मामलों डेंगू प्रघात की दशा [डेंगू शोक सिंड्रोम] आ जाती है जिसमे मृत्यु दर बहुत ऊँची होती है। डेन्गू की पहचान प्राय इन लक्षणों के आधार पर डॉक्टर करते है, बहुत ऊँचा ज्वर जिसका कोई अन्य स्थानीय कारण समझ नहीं आये, सारे शरीर पे चकते पड जाना। रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाना विश्व स्वास्थय संगठन ने डेंगू हैमरेज ज्वर की परिभाषा 1975 मे दी थी।

इसके चार मापक है जो अवश्य पूरे होने चाहिए-

1. ज्वर, ब्लेडर की समस्या, लगातार सिरदर्द, चक्कर आना,भूख ना लगना

2. रक्त स्त्राव की प्रवृति [टोर्नक्विट परीक्षण सकारात्मक आना, खुद ब खुद छिल जाना, नाक,कान से, टीका लगाने के स्थान से खून रिसना, खूनी द्स्त लगना और खून की उल्टी आना]

3. खून मे प्लेटलेट्स की संख्या कम होना [प्रतिघन सेमी रक्त मे <100,000 से कम होना]

4. प्लासमा रिसाव होने के साक्ष्य मिलना [हेमोट्रोक्रिट मे 20त्न से ज्यादा वृद्धि या हीमाट्रोक्रिट मे 20त्न से ज्यादा गिरावट ]

डेंगू शोक सिन्ड्रोम को परिभाषित किया गया है

1. कमजोर नब्ज़ चलना। नब्ज़ का दबाव कम होना [20 मिमी एचजी दबाव से कम]। ठण्ड, व्यग्रता। सीरोलोजी तथा पोलिमर चेन रिएक्शन के अध्ययन उपलव्ध है जिनके आधार पर डेंगू की पुष्टि की जा सकती है यदि चिकित्सक लक्षण पाकर इसका संदेह व्यक्त करे। इसका उपचार का मुख्य तरीका सहायक चिकित्सा देना ही है, मुख से तरल देते रहना क्योकि अन्यथा जल की कमी हो सकती है। नसों से भी तरल दिया जाता है ,यदि रक्त मे प्लेटलेट्स की संख्या बहुत कम हो जाये या रक्त स्त्राव शुरू हो जाये तो रक्त चढाना भी पडेगा, आंतो मे रक्तस्त्राव होना जिसे मेलना की मौजूदगी से पहचान सकते है मे भी खून चढाना पड सकता है इस संक्रमण मे एस्प्रीन या अन्य गैर स्टेरोईड दवाएँ लेने से रक्त स्त्राव बढ़ जाता है इसके स्थान पर संदिग्ध रोगियों को पेरासिटामोल देनी चाहिए

 

 

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