मोदी की वॉशिंगटन यात्रा से पहले क्यों कहा जा रहा भारत को गुलामों का देश
मोदी की वॉशिंगटन यात्रा से पहले क्यों कहा जा रहा भारत को गुलामों का देश
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वॉशिंगटन : अगले माह पीएम नरेंद्र मोदी वॉशिंगटन यात्रा पर जाने वाले है, लेकिन इससे पहले ही अमेरिकी संसद में मोदी की नीतियों को लेकर आलोचना हो रही है। यह आलोचना बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता, लैंगिंक हिसा, मानव तस्करी और गुलामी के बढ़ते मामलों को लेकर की जा रही है। मोदी की यात्रा से पहले अमेरिका-भारत संबंध प्रगति, संतुलन और उम्मीदों के प्रबंधन विषय पर चर्चा आय़ोजित की गई।

इस चर्चा में समिति के रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष बॉब क्रोकर ने भारत को सबसे अधिक गुलामों वाला देश बताते हुए निराशा जताई और कहा कि भारत इस स्थिति को दूर करने में नाकाम साबित हुआ है। बॉब ने कहा कि कैसे कोई 1.2 करोड़ से 1.4 करोड़ गुलामों वाला देश बन सकता है।

250 साल की गुलामी खुद झेल चुके अमेरिका के सांसद ने भारत के बारे में कहा कि क्या उनके अभियोजन पक्ष की क्षमता शून्य है, क्या उनकी कानून प्रवर्तन एजेंसियां शून्य है। मेरा मतलब है कि यह कैसे संभव है? वो भी उस पैमाने पर, यह बहुत अविश्वसनीय है।

उन्होने कहा कि मोदी ने आर्थिक सुधार करने की बजाए केवल बयानबाजी की है। भारत की लालफीताशाही वाली नीति पर निशाना साधते हुए बॉब ने कहा कि दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु करार के 8 सालों बाद भी भारत द्वारा अमेरिकी कंपनियों को निविदा जारी करने में प्रगति की कमी है।

इसी समिति के डेमोक्रेड बेन कार्डिन ने कहा कि भारत में मानव तस्करी जैसे मुद्दों के बावजूद किस प्रकार अमेरिका उसे अपना सहयोगी और साथी मान रहा है। एक अन्य डेमोक्रेट टिम काइने ने भारत द्वारा अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग को वीजा जारी नहीं करने का मुद्दा उठाया और सिख अमेरिकी समुदाय की धार्मिक सिख ग्रंथों और स्थानों की अपवित्रता को लेकर चिंताओं को जाहिर किया।

भारत और ईरान के बीच हुए 11 समझौतों में से एक चाबहार समझौता पर चर्चा करते हुए समिति ने कहा कि यह अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन है। ओबामा प्रशासन के विदेश मंत्रालय में दक्षिण और मध्य एशिया के मामलों को देखने वाली निशा देसाई बिस्वाल ने भारत के पक्ष में अपनी बातें रखी।

उन्होंने भारत को प्रजातांत्रिक, बहुलवादी और धर्मनिरपेक्ष समाज बताया जिसे अमेरिका भारत के साथ साझा करता है। इसे ओबामा ने 21वीं सदी की निर्णायक साझेदारी का नाम दिया था। ईरान के मामले में बिस्वाल ने कहा कि भारत ने ईरान के साथ किसी प्रकार की सामरिक साझेदारी नहीं की है, इसलिए यह अमेरिका के लिए चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के लिए ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया जाने का रास्ता है।

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