फांसी के  83 साल बाद उठी भगत सिंह को बेगुनाह साबित करने की मांग
फांसी के 83 साल बाद उठी भगत सिंह को बेगुनाह साबित करने की मांग
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लाहौर। पाकिस्तानी कोर्ट में सोमवार को एक याचिका लगाई गई। इस याचिका में शहीद-ए-आजम भगत सिंह को बेगुनाह साबित करने की मांग करती अर्जी पर जल्द सुनवाई का आग्रह किया गया। आपको जानकारी दे की भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेज अफसर जॉन पी सैंडर्स के हत्या के अपराध में 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। यह याचिका उसी फैसले के खिलाफ लगाई गई है। बेंच भगत सिंह को सैंडर्स हत्याकांड में बेगुनाह साबित कर सकती है क्योंकि 450 गवाहों के बयान लिए बगैर ही उन्हें फांसी दी गई थी।

आपको बताते चले की यह याचिका एडवोकेट इम्तियाज राशिद कुरैशी ने दायर की है। जानकारी दे की वकील कुरैशी भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन भी हैं। कुरैशी का कहना है कि कोर्ट की कम्प्लीट बेंच इस मामले की सुनवाई करे। कुरैशी ने जानकारी देते हुए बताया की शुरू में भगत सिंह को सजा-ए-उम्रकैद मुक़र्रर की गई थी।

लेकिन बाद में एक मनगढ़ंत अपराध में सजा-ए-मौत (फांसी) सुना दी गई थी। भगत सिंह एक महान शख्सियत है और पुरे देश में सिर्फ सिखों और मुसलमानों में नहीं, बल्कि समूचे हिंदुस्तान में सम्मानित है। याचिका में उन्होंने कहा है कि भगत सिंह से जुड़ा मामला राष्ट्रीय स्तर का है। भगत सिंह एक क्रांतिकारी थे और देश की आजादी के लिए लड़े थे।

आपको जानकारी दे की लाहौर हाई कोर्ट के जज शुजात अली खान ने इस मामले की आखिरी सुनवाई मई 2013 में की थी। उन्होंने मामला बड़ी बेंच के हवाले करने के लिए चीफ जस्टिस को भेज दिया था। पिछले वर्ष पुलिस ने 1928 में सैंडर्स हत्याकांड की मूल FIR की एक कॉपी कोर्ट के आदेश पर कुरैशी को सौंपी थी।

जिसमे की भगत सिंह का नाम नहीं था, जिसके कारण महज 23 वर्षीय भगत सिंह को 1931 में फांसी पर चढ़ा दिया गया था। लाहौर पुलिस ने फांसी के 83 साल बाद कोर्ट के निर्देश पर उस मुकदमे से जुडी FIR की कॉपी अनारकली थाने से ढूंंढ निकाली। यह FIR उर्दू भाषा में लिखी हुई है। इस FIR को 17 दिसंबर 1928 को शाम 4:30 बजे अज्ञात बंदूकधारी के खिलाफ दर्ज करवाया गया था।

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