'हमारा राष्ट्र, हमारा तिरंगा, हमारे श्रीकृष्ण..', RSS प्रमुख मोहन भागवत से मिलकर क्या-क्या बोले महाराज प्रेमानंद ?
'हमारा राष्ट्र, हमारा तिरंगा, हमारे श्रीकृष्ण..', RSS प्रमुख मोहन भागवत से मिलकर क्या-क्या बोले महाराज प्रेमानंद ?
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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कल बुधवार (29 नवंबर) को प्रेमानंद महाराज से मुलाकात कर आशीर्वाद लिया। इस दौरान दोनों के बीच कई मुद्दों पर सार्थक बातचीत भी हुई। संवाद के दौरान मोहन भागवत ने प्रेमानंद महाराज से कहा कि, बस आपके दर्शन करने थे, आपकी बात वीडियो में सुनी, तो लगा कि आपसे मुलाकात करना चाहिए। बातचीत के दौरान संघ प्रमुख ने कहा कि,  'आप लोगों से सुनते हैं, वही हम भी बोलते हैं। मगर चिंता ये होती है, हम लोग करते चले जा रहे हैं, आप लोग भी कर रहे हैं, इतनी बातें बढ़ भी रही हैं। कोशिशें तो करेंगे ही, निराश तो कभी होगे नहीं। क्योंकि जीना तो इसी के लिए है, मरना भी इसी के लिए है। लेकिन क्या होगा, ये चिंता मन में आती है। मेरे मन में भी और सबके मन में भी।

इस पर प्रेमानंद महाराज ने उनसे कहा कि, ''इसका उत्तर सीधा और स्पष्ट है कि क्या हमने श्रीकृष्ण पर विश्वास नहीं करते। हमें जो खास बात पकड़नी है, क्या भगवान श्रीकृष्ण के प्रति हमारे विश्वास में कमी है। यदि विश्वास दृढ़ है, तो वही होगा, जिसे कहा जाता है परम मंगलमय। परम मंगल ही होगा। कदम पीछे नहीं हटेंगे। हम अपने अध्यात्म बल को जानते हैं। इसलिए कदम पीछे नहीं हटेंगे।।। हम अपने स्वरूप को जानते हैं, इसलिए हमें इस बात को लेकर डरना नहीं है कि क्या होगा? तीन प्रकार की लीलाएं भगवान की हो रहीं हैं- एक सृजन, एक पालन, एक संहार, जिस वक़्त जैसा (भगवान का) आदेश होगा, हम उनके दास हैं, वैसा ही करेंगे। क्या होगा।।। वही होगा जो मंगल रचा होगा। जो भगवान श्रीकृष्ण ने रचा होगा। हमें संशय नहीं करना है अब। जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपने लोगों को तैयार किया है। वैसा ही एक और तैयार हो जाएगा, जो काफी अच्छे से संभालेगा। आपको फ़िक्र नहीं करना है, क्या होगा। हमारे साथ भगवान श्रीकृष्ण हैं, वही होगा जो मंगल होगा।''

प्रेमानंद महाराज ने आगे कहा कि, 'निराशा, हताशा, उदासी अब हमारे जीवन में अधिकार नहीं रखते, किसी भी स्थिति में। किसी भी प्रकार का शोक नहीं, भय नहीं। अविनाशी हूं, जो सेवा मिली है, दहाड़ता रहूंगा, जब तक सांस है। जब शरीर त्याग होगा, तो जो स्वरूप है, उसी को प्राप्त हो जाउंगा।'' प्रेमानंद महाराज ने कहा कि, ''हमारा तिरंगा, हमारा राष्ट्र, हमारा भगवान है। आप तप के माध्यम से, भजन के माध्यम से लाखों की बुद्धि को शुद्ध कर सकते हैं। एक भजन लाखों लोगों का उद्धार कर सकता है। तुम भजन करो, इंद्रियों पर विजय प्राप्त करो और राष्ट्र सेवा में जुट जाओ। राष्ट्र की सेवा के लिए प्राण समर्पित कर दो। ये राष्ट्र सेवी हैं। लेकिन ये जितेन्द्रिय होकर, भोगी होकर नहीं, बल्कि योगी होकर करो।''

प्रेमानंद महाराज ने कहा कि, आचरण से, संकल्प से और वाणी से तीनों से समाज सेवा और राष्ट्र सेवा करनी है। हम सदैव चाहेंगे, आप जैसे सतमार्ग में प्रेरित करने वाले स्वस्थ और सेहतमंद रहें, भगवान हमेशा रक्षा करें और आगे बढ़ते रहें।  देशवासियों की बौद्धिक और वैचारिक स्तर का सुधार करते रहें।  ऐसे लोग कम देखने को मिलते हैं। इससे पहले प्रेमानंद महाराज ने कहा कि, अपने लोगों को जन्म जो भगवान ने दिया है, वो केवल मानव सेवा के लिए दिया है। व्यवहारिक सेवा और अध्यात्मिक सेवा करने के लिए दिया है। सिर्फ व्यवहारिक सेवा होती रहे, हम अपने देशवासियों को सुखी रखना चाहते हैं, तो केवल सुविधाओं और वस्तुओं से नहीं कर सकते। उनका बौद्धिक स्तर भी सुधारना होगा। आज हमारे समाज का बौद्धिक स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। ये फ़िक्र की बात है। हम सुविधाएं दे देंगे, हम भोग विलासिता की सामग्रियां दे देंगे। किन्तु उनके हृदय की मलीनता है, जो हिंसात्मक प्रवृत्ति है, अपवित्र बुद्धि है, ये सुद्ध नहीं होगी। 

उन्होंने आगे कहा कि, हमारा देश धार्मिक देश है। यह धर्म प्रधानता वाला देश है। इसी बात को हम सबसे लगातार निवेदन करते रहते हैं, जो हमारी नई पीढ़ी है। इसी से हमारे राष्ट्र की सेवा करने वाले जन्म लेते हैं। इन्हीं में से कोई विधायक, सांसद बनता है, कोई प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति बनता है। उन्हीं में अपने लोग हैं। हमारी शिक्षा केवल आधुनिकता का रूप लेती जाए और हिंसात्मक प्रवृत्ति नई पीढ़ी में देखकर काफी दुख होता है। इसलिए शरीर में कितनी भी पीढ़ी हो, हम कोशिश करते हैं, जितने लोग हमारे सामने आते हैं, उनकी बुद्धि शुद्ध और पवित्र होनी चाहिए। 

उन्होंने आगे कहा कि, धर्म का क्या स्वरूप है, जीवन का लक्ष्य क्या है। हमें जितना राम और श्रीकृष्ण प्रिय हैं, उतना ही हमारा राष्ट्र प्रिय है। हमारे लिए देश का जन जन हमें प्रिय है। मगर जो भावनाएं बन रही हैं, वो हमारे देश और धर्म के लिए सही नहीं है। हिंसा का बढ़ता स्वरूप बेहद विपत्तिजनक है। यदि ये बढ़ता रहा, तो हम सुख सुविधाएं देने के बाद भी देश के लोगों को सुखी नहीं रख पाएंगे। क्योंकि सुख का स्वरूप विचार से होता है। हमारा विचार मलिन हो रहा है, हमारा उद्देश्य है, ये है कि हमारे देशवासियों का विचार शुद्ध और पवित्र होना चाहिए।  

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