सिवान में 16 अगस्त का वह शोर और पसरा सन्नाटा
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सिवान। सिवान में आज भी पूर्व विधायक मोहम्मद शाहबुद्दीन को याद किया जाता है। आज भी शाहबुद्दीन के कदम पड़ने की आहट आते ही लोग यहां पर दहल उठते हैं दरअसल यहां 16 अगस्त 2004 को कुछ ऐसा हुआ था कि बच्चा - बच्चा सिहर जाता है। आखिर क्या हुआ था इस दिन दरअसल हफ्ता वसूली का मामला बढ़ते - बढ़ते इतना बढ़ गया कि इसने तेजाब हत्याकांड जिसे एसिड अटैक कहते हैं उसका रूप ले लिया। दरअसल हाॅस्पिटल रोड़ क्षेत्र में एक दुकान पर बैठे दो भाईयों को हफ्ता वसूली का सामना करना पड़ा। मगर इनके आगे किसी की नहीं चली और उनका सामना करने भी कोई नहीं आया।

दरअसल चंद्रकेश्वर प्रसाद जिन्हें चंदा बाबू के नाम से जाना जाता है। वे अपने बड़े बेटे के साथ बैठते थे। हालांकि उस दिन कुछ लोग उनके मकान पर पहुंचे और 2 लाख रूपए की मांग करने लगे। इन लोगों ने धमकी भरे लहजे में कहा था कि वे लोग राजद नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन के लोग हैं। जब उन्हें रूपए देने से इन्कार कर दिया गया तो उन्होंने विवाद किया और चंदा बाबू के बेटे को पीटना प्रारंभ कर दिया। ऐसे में हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले बेटे ने आरोपियों पर तेजाब की बोतल फैंकी।

तेजाब के छींटे पिटाई करने वालों के उपर पड़े तो वे डरकर भाग गए। लेकिन कुछ ही देर में पहले से भी अधिक लोग वहां पहुंचे। ये लोग चंदा बाबू के दोनों लड़कों को कहीं ले गए। इस मामले में कहा गया कि उन्हें शहाबुद्दीन प्रतापपुर ले गया था। जहां पर सतीश और गिरीश इन दोनों भाईयों को एक कमरे में बंद कर दिया गया। तीसरे भाई राजीव को भी एक अन्य कमरे में बंद कर दिया गया। कथित तौर पर प्राथमिकी में यह बात सामने आई है कि सतीश और गिरीश को तेजाब से नहला दिया गया था। इन दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था। मगर राजीव घ् ाटनास्थल से भागने में सफल हो गया था। इसके तीन साल बाद वह लौटा। तब यह प्रकरण चल ही रहा था। चंदाबाबू का बड़ा बेटा राजीव ने आरोपियों की पहचान कर दी।

मगर इसके कुछ दिनों बाद राजीव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद मोहम्मद शाहबुद्दीन को मुख्यतौर पर साजिश रचने वाले के तौर पर प्रकरणबद्ध किया गया। इस मामले की सुनवाई के तहत शहाबुद्दीन और अन्य आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। मोहम्मद शहाबुद्दीन ने पटना हाईकोर्ट में अपील की और जमानत की याचिका दायर की। ऐसे में उन्हें जमानत दे दी गई। दरअसल राजीव शहाबुद्दीन के लिए ही काम करता था लेकिन खुद चंदा बाबू को आश्चर्य हुआ और लोगों को भी आश्चर्य हुआ कि शाहबुद्दीन के लिए कार्य करने वाले व्यक्ति को ही शाहबुद्दीन ने इस तरह से कथिततौर पर मौत के घार उतरवा दिया।

जब शाहबुद्दीन जेल से छूटकर सीवान लौटे तो चंदाबाबू अपने घर में सहमे हुए, डरे हुए थे। उन्होंने शाहबुद्दीन के वाहनों का काफिला देखा। चंदाबाबू की पत्नी कलावती अपने तीनों बेटों की हत्या से बेहद दुखी हैं वे अपने कमरे में बिस्तर पर ही लेटी रहती हैं और उनकी आंखों से आंसू झरते हैं। चंदा बाबू को क्या पता था कि जिसके हाथ से वे अपनी दुकान का शुभारंभ करवाऐंगे वही उनकी दुनिया उजाड़ने का कारण बनेगा। अब चंदा बाबू का उनका सबसे छोटा बेटा ही सहारा बना हुआ है। यह बेटा दिव्यांग है और चंदाबाबाू को उसके जीवन की चिंता खाए जा रही है।

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